For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चाक दिल सिलता नहीं देखो दुबारा (ग़ज़ल 'राज')

२१२२   २१२२   २१२२ 

ढूँढती इक मौज तूफां में किनारा

क्यूँ समझता ही नहीं सागर ईशारा

 

तिश्नगी उसको कहाँ तक ले गई है

अक्स अपना झील में उसने उतारा

 

फ़र्क क्या पड़ता चमकती चाँदनी को

छटपटाता फिर कहीं टूटा सितारा

 

फट गया जो पैरहन तो ग़म नहीं है

चाक दिल सिलता नहीं देखो दुबारा

 

डोलती किश्ती बढ़ाती हाथ अपना

उस तरफ़ तुम मोड़ लो अपना शिकारा

 

खोल दो गर तुम लटकती उस पतंग को

लोग देखेंगे अजब दिलकश नजारा

 

देख लो इक बार उसको मुस्कुराकर

डूबते की आस तिनके का सहारा

 

अंजुमन में गैरों की उस गुफ़्तगू में

 कम से कम अब नाम तो आया हमारा 

 

लौट आयें फिर वही पुर-कैफ़ मंजर

वक़्त जिनके दरमियाँ हमने गुज़ारा

---------------------------------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित ) 

पुर-कैफ़ मंजर---सुखद आनंद भरा   नाम 

Views: 754

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 16, 2014 at 11:08am

मिथिलेश जी ,ग़ज़ल पर आपके द्वारा विस्तृत समीक्षा पाकर ग़ज़ल स्वतः मुकम्मल हो गई है मेरा कलम ममनून है आपकी इस जर्रानवाजी का बहुत बहुत बहुत शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 15, 2014 at 11:49pm

ढूँढती इक मौज तूफां में किनारा

क्यूँ समझता ही नहीं सागर इशारा .... क्या बात है उम्दा बहुत खूब 

 

तिश्नगी उसको कहाँ तक ले गई है

अक्स अपना झील में उसने उतारा ....कमाल है बस क्या खूब कहा है ...तिश्नगी की हद ...

 

फ़र्क क्या पड़ता चमकती चाँदनी को

छटपटाता फिर कहीं टूटा सितारा..... बेहतरीन शेर 

 

फट गया जो पैरहन तो ग़म नहीं है

चाक दिल सिलता नहीं देखो दुबारा .... दिली बधाइयाँ 

 

डोलती किश्ती बढ़ाती हाथ अपना

उस तरफ़ तुम मोड़ लो अपना शिकारा ..... बहुत बेहतरीन "डोलती किश्ती बढ़ाती हाथ अपना"  

 

खोल दो गर तुम लटकती उस पतंग को

लोग देखेंगे अजब दिलकश नजारा....अच्छा शेर 

 

देख लो इक बार उसको मुस्कुराकर

डूबते की आस तिनके का सहारा..... बेहद उम्दा शेर.... डूबते की आस को  बस एक मुस्कान ... बस थोड़ा सा साथ थोड़ी सी हमदर्दी 

 

अंजुमन में गैरों की उस गुफ़्तगू में

 कम से कम अब नाम तो आया हमारा ... अच्छा शेर 

 

लौट आयें फिर वही पुर-कैफ़ मंजर

वक़्त जिनके दरमियाँ हमने गुज़ारा... बेहतरीन ... आखिरी पर उम्दा 

पुनः नमन .... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 8, 2014 at 10:51am

आ० हरिवल्लभ शर्मा जी ,आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया ने मेरी लेखनी को नव ऊर्जा तथा संबल दिया तहे दिल से आभार आपका सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 8, 2014 at 10:49am

प्रिय महिमा श्री ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार आपका |

Comment by harivallabh sharma on October 7, 2014 at 9:29pm

बहुत ही उत्कृष्ट ग़ज़ल...सभी अशआर जोरदार..आदरणीया rajesh kumari जी.

फ़र्क क्या पड़ता चमकती चाँदनी को

छटपटाता फिर कहीं टूटा सितारा

 

फट गया जो पैरहन तो ग़म नहीं है

चाक दिल सिलता नहीं देखो दुबारा...सुन्दर शेरों सजी ग़ज़ल हेतु बधाई.

Comment by MAHIMA SHREE on October 7, 2014 at 9:25pm

वाह वाह ..पूरी ग़ज़ल ही शानदार है ..हार्दिक बधाई आ. राजेश दी ..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 7, 2014 at 7:31pm

आ० विजय मिश्र जी,ग़ज़ल पर आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया  हेतु हार्दिक आभार सादर |

Comment by विजय मिश्र on October 7, 2014 at 5:51pm
राजेशजी , साधुवाद इस प्यारी सी प्यार को आमंत्रित करती रचना के लिए |पुनः आभार |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 6, 2014 at 6:33pm

पवन कुमार जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभार आपका |

Comment by Pawan Kumar on October 6, 2014 at 6:21pm

"बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,  आदरणीया ... बधाई सादर!"

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
15 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
17 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service