For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपनेपन की रीत पुरानी अब भी है

रास पर एक प्रयास और -

अपनेपन की रीत पुरानी अब भी है

गाँवों का जीवन लासानी अब भी है

 

जिसकी गोद सुहाती थी भर जाड़े में

उस मगरी पर धूप सुहानी अब भी है

 

जिनमें अपना बचपन कूद नहाया था

उन तालाबों में कुछ पानी अब भी है

 

बाँह पसारे राह निहारे सावन में

अमुवे की इक डाल सयानी अब भी है

 

गर्मी की छुट्टी शिमला में बुक लेकिन

रस्ता तकते नाना नानी अब भी है

 

ठाकुर द्वारे में झालर संझ्या दीपक

चरणामृत का पावन पानी अब भी है

 

ऊब मिटाने आजा पिज़्ज़ा बर्गर की

वो तिल के लड्डू ,गुड़ धानी अब भी है

 

बोर- मतीरे, तेंदूफल, गुंदे- केरी 

कच्ची इमली दांत खटानी अब भी है

 

चौक चबूतर काग कबूतर वाले वो

चींटी तक को दाना पानी अब भी है

 

पंचम में चरवाहों की मीठी ताने

हलवाहों की राग लुभानी अब भी है

 

बूढ़े बरगद सब गदगद हो जायेगें

आशीषों की छाँव सुहानी अब भी है

 

धूल लिपट जायेगी पाँवों से झटपट

राहें सब जानी पहचानी अब भी है

 

बूढ़ा कब होता है पनघट का रस्ता

सर पर गगरी शोख़ जवानी अब भी है

 

तुम ‘खुरशीद’ भले भूले लेकिन तुमको

रोज चितारे एक जनानी अब भी है

मौलिक व अप्रकाशित 

 

Views: 565

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pawan Kumar on September 30, 2014 at 11:38am

आदरणीय सादर नमन, बहुत सुन्दर प्रस्तुति, सारे रंग व्याप्त हैं!
पढकर मजा आ गया, जैसे सारे चित्र सामने हों!
इस सुन्दर एवं अनुपम् प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई।

Comment by khursheed khairadi on September 22, 2014 at 8:44am

आदरणीय हरिवल्लभ शरमा जी ,गोपालनारायण साहब ,जितेंदर जी .प्रेमजी ,विजयशंकर जी ,विजयप्रकाश जी आप सभी विद्जनों का हृदयतल से आभारी हूं |मुझ मंच के नये सदस्य को जो स्नेह आप सभी से मिला उससे मैं अभिभूत हूं |आप सभी का आशीर्वाद और स्नेह बना रहें |सादर 

Comment by harivallabh sharma on September 21, 2014 at 2:23pm

ठाकुर द्वारे में झालर संझ्या दीपक

चरणामृत का पावन पानी अब भी है

 

ऊब मिटाने आजा पिज़्ज़ा बर्गर की

वो तिल के लड्डू ,गुड़ धानी अब भी है...गाँव का स्नेहिल वातावरण का सचित्र वर्णन करती ग़ज़ल हेतु बहुत बधाई आपको आदरणीय 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 20, 2014 at 2:01pm

खुर्शीद जी

आप इस मंच पर नये  नये  आये पर आपने अपना स्थान  बना लिया i आपकी लेखनी को मै नमन करता हूँ i गजल के बारे में कुछ भी कहना बेमायने है i  सर्वोत्तम i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 20, 2014 at 8:35am

बहुत ही सुंदर भाव, अपनी और आकर्षित करते हुए. हार्दिक बधाई आपको आदरणीय खुर्शीद साहब

Comment by Neeraj Nishchal on September 19, 2014 at 9:06pm
क्या खूब झीनी झीनी मधुर यादोँ की खुशबू लिये हुये है आपकी ये अपार सुन्दर गजल

जिन झूलोँ से गिरकर कल भी रोते थे
उन की खातिर आँख मेँ पानी अब भी है ।

बहुत बहुत धन्यवाद और बधाई प्रेषित है ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 19, 2014 at 11:23am
"धूल लिपट जायेगी पाँवों से झटपट
राहें सब जानी पहचानी अब भी है
बूढ़ा कब होता है पनघट का रस्ता
सर पर गगरी शोख़ जवानी अब भी है"
आकर्षक , मनभावन , बधाई आदरणीय खुर्शीद खैरादि जी .
Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on September 18, 2014 at 11:28pm

भाव विह्वल करती रचना हेतु बधाई जनाब खैराड़ी जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
9 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service