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ग़ज़ल ..रूबरू हम हो गए

खुद ज़रा गर्दन झुकाकर रूबरू हम हो गए.

बंद करली आँख अपनी गुफ़्तगू में खो गए.

वस्ल की जो थी तमन्ना किस क़दर हावी हुयी.

ख्व़ाब में आयेंगे वो इस जुस्तजू में सो गए.

कौन जाने थी नज़र या वो बला जादूगरी.

देख मुझको बीज दिल में इश्क का वे बो गए.

वायदा उनका मकम्मल आज आने को कहा.

आ रहे वादे मुताविक देखते ही वो गए.

वक़्त लेता करवटें जो आज है कल है नहीं.

चार दिन की चांदनी को अब अँधेरे लो गए.

पोंछने आया नहीं वो अश्क आखों से बहे.

आएगा सैलाब कोई इसलिए हम रो गए.

जिंदगानी थी कठिन जो कट गयी तेरे बिना.

जीस्त का ये बोझ सारा हम अकेले ढो गए.

थी बहुत सारी शिकायत दोस्त ऐ तुझसे मुझे.

दाग दिल के थे अनेकों मुस्कुरा कर धो गए.

**हरिवल्लभ शर्मा दि. 16.09.2014

 

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Comment by harivallabh sharma on September 18, 2014 at 10:35pm

आदरणीय Ram Awadh Vishwakarma  जी आपका सुझाव ठीक हो सकता है मगर ली की मात्रा 2 हैं वहां मात्रा पतन करना होगा...जबकि बंद कर लीं आँख अपनीं में दोनों आँखों का ही भास होता है...आपके सुझाव का स्वागत.हार्दिक आभार.

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on September 18, 2014 at 11:52am

आदरणीय बंद करली आँख अपनी गुफ़्तगू में खो गए
एक ही आँख बन्द कर ली या दोनों
मेरी समझ से ऐसा किया जा सकता है।
बंद आँखें करली अपनी गुफतगू में खो गये।

Comment by harivallabh sharma on September 18, 2014 at 1:12am

आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब हार्दिक आभार वास्तव में ग़ज़ल का मतला और मक्ता ही ग़ज़ल की जान होते हैं...मेरी को कोशिश को आपने उच्चता प्रदान कर प्रयास पर स्नेह दिया आपका हार्दिक साधुवाद...

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 17, 2014 at 10:44pm

आदरणीय हरि भाई, 

खुद ज़रा गर्दन झुकाकर रूबरू हम हो गए.

बंद करली आँख अपनी गुफ़्तगू में खो गए.

ऊँचाई को छूती ये पंक्तियाँ सब से अलग है ,  और पूरी गज़ल की ज़ान है , परम भक्त भगवान का दर्शन कुछ इसी तरह  करता होगा। 

हृदय से बधाई स्वीकार  करें । 

Comment by harivallabh sharma on September 17, 2014 at 6:25pm

आदरणीय जितेन्द्र 'गीत' जी बहुत शुक्रिया.आपने भाव में सहभागी बन ग़ज़ल का मान बढाया आपका हार्दिक आभार 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 17, 2014 at 12:11pm

बहुत ही खुबसूरत गजल कही आपने आदरणीय हरी भाईसाहब. हर एक शे'र के भावों में कुछ अपना सा लगा, बस कलम आपकी. बहुत-२ बधाई आपको

Comment by harivallabh sharma on September 17, 2014 at 12:03pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव साहब ग़ज़ल पर आपका स्नेह मिला..हौसला अफजाई हेतु हार्दिक आभार ..सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 17, 2014 at 11:40am

अच्छी गजल हुई है . मान्यवर .

Comment by harivallabh sharma on September 17, 2014 at 11:06am

आदरणीय Laxman dhami जी ग़ज़ल पर स्नेह दिया...हार्दिक आभार आपका, कृपया स्नेह बनाये रखें.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2014 at 10:58am

वस्ल की जो थी तमन्ना किस क़दर हावी हुयी.

ख्व़ाब में आयेंगे वो इस जुस्तजू में सो गए.

बहुत खूब .....................

आदरणीय भाई हरिवल्लभ  जी l इस  सुन्दर ग़ज़लके लिए  हार्दिक बधाई स्वीकारें .

कृपया ध्यान दे...

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