For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“भाभी, अगर कल तक मेरी राखी की पोस्ट आप तक नहीं पँहुची तो परसों मैं आपके यहाँ आ रही हूँ  भैया से कह देना ” कह कर रीना ने फोन रख दिया|

अगले दिन भाभी ने सुबह ११ बजे ही फोन करके कहा, "रीना राखी पहुँच गई है ”

"पर भाभी मैंने तो इस बार राखी पोस्ट ही नहीं की थी !!! "


(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 1620

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on August 11, 2014 at 7:40pm

रिश्ते को परखने के लिए,किसी को सही जानने के लिए कभी छोटा-सा झूठ भी बोलना पड़ता है ... यह भी तो दुख की बात है न।

ठीक शब्दों में आपकी लघु कथा आज के रिश्तों को बयाँ कर रही है। हार्दिक बधाई, आदरणीया राजेश जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 11, 2014 at 5:50pm

जी सही कहते हैं आप  आ० विजय मिश्र जी |

Comment by विजय मिश्र on August 11, 2014 at 5:49pm
जैसे ही इन रिश्तों के अंदर कपट भाव आ जाए , कोमल तत्वों का स्फुरण समाप्त |और जीवन में उबन और खटास का यह छ्लवृति एक कारण बन गया है | आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 11, 2014 at 5:27pm

आ० विजय मिश्र जी,यदि मन साफ़ हो तो नन्द और भौजाई से बड़ा स्नेह प्यार का रिश्ता हो ही नहीं सकता दोनों चाहें तो गहरी दोस्त बन कर मिसाल कायम कर सकती हैं परिवारों में खुशियाँ भर सकती हैं किन्तु इन रिश्तों का आजकल दूसरा ही चेहरा देखने को मिल रहा है,आपको लघु कथा पसंद आई आपका दिल से आभार |  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 11, 2014 at 5:23pm

जी आ० सौरभ जी,सही कहा :-))))) .

Comment by विजय मिश्र on August 11, 2014 at 5:10pm
राजेशजी , हमारे यहाँ नन्द-भौजाई के सम्बन्ध में चिरौरी और चुटीली भाषा का आदान-प्रदान सहज भाव है और आप इसे इस कथा में उतनी ही पारम्परिक रूप में समप्रेषित किया |साधुवाद

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2014 at 2:36pm

//हम लेखक लोग अपने ही नहीं अपने आस पास वालों के दुःख दर्द को भी अपनी रचनाओं के माध्यम से जीते हैं, हैं न ?? //

:-))) .. परहित सरिस धरम नहीं भाई..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 11, 2014 at 11:49am

प्रिय गीतिका,सच कहा रिश्ते मेंटनेंस चाहते हैं दोनों ही छोर  से ...किन्तु इससे उलट हो रहा है न्यूक्लीयर फैमिली बस तू मैं और हमारे बच्चे तक ही सीमित होकर रह गई हैं और किसी का आना जाना सिर्फ और सिर्फ दखल अन्दाजी लगता है और त्यौहार ओपचारिकता भर ...आपको लघुकथा के मर्म ने व्यथित किया होता भी है हम लेखक लोग अपने ही नहीं अपने आस पास वालों के दुःख दर्द को भी अपनी रचनाओं के माध्यम से जीते हैं, हैं न ?? हार्दिक आभार आपका| 

Comment by वेदिका on August 11, 2014 at 11:15am
रिश्ते कितना मेंटिनेंस मांगते है, एक संवाद और सम्मान। वर्ष के वर्ष आने वाले त्यौहार पर भी यदि यही प्रतिउत्तर रह जाता है तो मन करता है कि अविवाहित रहते हुए ही राखियाँ संजो ली जाएँ।
आपकी कथा उस दूसरे पहलू पर भी प्रकाश डालती है जिससे बचा जा रहा है। क्योंकि लगभग मृत हो चुके रिश्ते को ढोना भी संभव नही।
सावन के रिश्तों को तार तार करती लघुकथा पर आपको हार्दिक बधाई पहुंचे आदरणीया!
सादर!!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 11, 2014 at 10:12am

आ० सौरभ जी,लघुकथा पर आपकी प्रतिक्रिया एक ओर मेरी कलम को ऊर्जस्वी बना रही है तो दूसरी और मुझे अपनी इस लघुकथा के लिए आश्वस्त भी कर रही है सार्थकता प्रदान कर रही है आपका हृदय तल से आभार | 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
5 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service