For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दृष्टि   मिलन  के  प्रथम पर्व में

दृप्त    वासना   नभ   छू   लेती

पागलमन   को   बहलाता   सा

जग  कहता   नैसर्गिक   सुख है I

 

क्या  निसर्ग  सम्भूत  विश्व  में

क्या स्वाभाविक और सरल क्या

वाग्जाल   के    छिन्न   आवरण

में     मनुष्य   की   दुर्बलता    है I

 

बुद्धि   दया   की   भीख मांगती

ह्रदय    उपेक्षा    से    हंस    देता

मानव !    तेरी      दुर्बलता    का

इस    जग   में   उपचार   नहीं  है I

 

संस्कार    है    गत    जन्मो   का

या   फिर     है   अँधा    आकर्षण

छल   भी   नहीं   न   है  सम्मोहन

मनुज    हृदय   का    पाप  प्रेम   है I

 

 

[मौलिक व् अप्रकाशित ]

Views: 705

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 5, 2014 at 9:25pm

आशीर्वाद ? नाः नाः ..  आदरणीय, सादर सहयोग कहें.

आपको प्रतिक्रिया-रचना रोचक लगी, इसका आभार.

शुभ-शुभ

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 5, 2014 at 8:53pm

महनीया  प्राची जी

आप स्वयं विशेषज्ञा  हैं i आपकी संस्तुति परम तोष प्रदान करती है  i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 5, 2014 at 8:51pm

आदरनीय  निकोर जी

आपसे आशिर्वाद मिलता है  तो मन सावन सा लहराने लगता है i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 5, 2014 at 8:49pm

आदरनी सौरभ जी

आपने प्रेम को अपनी कविता में इतना सुन्दर परिभाषित  किया कि मै निःशब्द हूँ i आप बेजोड़ है श्रीमन  i आपका आशीर्वाद सदा मिले i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 4, 2014 at 10:56pm

प्रेम के बाह्य स्वरुप के अंतर्मन को उद्वेलित करते प्रारूप पर मनस वृत्तियों की खूब एनालिसिस करके ये प्रवहमान रचना प्रस्तुत हुई है...

बहुत खूबसूरत 

हार्दिक बधाई आ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी 

Comment by vijay nikore on August 4, 2014 at 5:57pm

सुन्दर बिम्ब, सुन्दर भाव, सुन्दर शिल्प .... सभी कुछ है आपकी इस कविता में। हार्दिक बधाई, आदरणीय गोपाल नारायन जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2014 at 5:41pm

कोमल पल के न्यून भाग में
जिन शुभ भावों को मन जीता
उस ही के सम्मोहन में तन
नत होता है, रत होता है

देह धर्म के साधन के हित
माध्यम मात्र यदि माने तो
संयोजन ही मूल आचरण  
सदा सनातन अनुभव कहता

यही भाव है, मोद यही है
यही उर्ध्व आचार सही है
यही प्रेम का अभिनव रूपक
इसके इतर कहाँ कुछ संभव ?

तन की सिहरन से आवेशित
मूढ़ मनुज हो यदि उद्वेलित
नहीं कहो वह प्रेमपगा है,
वह तो पाप-श्राप जीता है..

आदरणीय गोपालनारायणजी, आपकी प्रस्तुति के आलोक में मैंने प्रेम के सात्विक स्वरूप को शब्दबद्ध करने का प्रयास किया है. मनुष्य का बाह्यकरण प्रेम की भौतिक प्रक्रिया के रुपायित होने का कारण है, नकि प्रेम के सत-चित-आनन्द स्वरूप का प्रवर्तक !!

शैली और विन्यास के तौर पर आपकी रचना से मुझे हरिऔंधजी का प्रिय-प्रवास की स्मृति हो आयी. उनकी मात्रिकता और गेयता निर्वहन करती छन्दबद्ध अतुकान्त रचनाएँ !  आपने मात्रिकता का खूब निर्वहन किया है.
बधाई आदरणीय, बधाई..
सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 4, 2014 at 11:51am

जीतू जी

आपका आभारी हूँ i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 4, 2014 at 11:50am

जवाहर लाल जी

आपके उत्साहवर्धन का आभारी हूँ  i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 4, 2014 at 11:49am

पाठक जी

आपका हार्दिक आभार i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Jul 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service