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“ अरे! बेटा..तैयार हो रहे हो. अगर बाहर तक  जा रहे हो तो अपने पिता कि दवाई ले आओ, कल कि ख़त्म हुई है”

“ अरे! यार मम्मी!!   मैं जब भी बाहर निकलता हूँ , आप टोंक देती हो. आपको  पता है न, हमारी पूरी एन.जी.ओ. की टीम पिछले हफ्ते से गरीब और असहाय लोगों कि सहायता के लिए गाँव-गाँव घूम रही है. शायद ! आप जानती  नही हो, अभी  मेरी  सबसे बढ़िया प्रोग्रेस  है पूरी टीम में ”

 

        

जितेन्द्र ‘गीत’

 (मौलिक व् अप्रकाशित)    

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 27, 2014 at 9:55pm

आदरणीया सविता जी, आपका हार्दिक आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 27, 2014 at 9:54pm

आपकी सराहना हेतु ,आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय विनय जी

सादर!

Comment by vijay nikore on July 27, 2014 at 4:56pm

अच्छी लघुकथा के लिए बधाई।

Comment by आदित्य श्रीराधेकृष्ण सोऽहं on July 27, 2014 at 3:22pm

श्री राधे! कितने तुच्छ विचार होते जा रहे हैं आज की युवा पीढ़ी के| 
घर में जो असहाय है उसे अनदेखा कर बाहर असहाय खोजने चले हैं!

बहुत सुन्दर कथा है! मर्मस्पर्शी है! यथार्थ का चित्रण करती है!

Comment by savitamishra on July 27, 2014 at 1:28pm

बहुत अच्छी लघुकथा

Comment by विनय कुमार on July 27, 2014 at 3:03am

बहुत अच्छी लघुकथा , ये फ़र्क़ देखने को मिल जाता है । बधाई ..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 27, 2014 at 2:03am

आदरणीया कल्पना दीदी, आपका कहना बिलकुल सही है. प्रतिक्रिया हेतु आपका हार्दिक आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 27, 2014 at 2:01am

आप बिलकुल सच कह रहे है आदरणीय डा.विजय शंकर जी.आपके अनुमोदन हेतु  आपका ह्रदय से आभारी हूँ.

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 27, 2014 at 1:59am

आपको लघुकथा पसंद आई, बहुत ख़ुशी हुई आदरणीया प्रियंका जी. आपका हार्दिक आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 27, 2014 at 1:58am

रचना को आपका आशीर्वाद मिला, रचना धन्य हुई आदरणीय डा.गोपाल जी. आपका ह्रदय से आभार

सादर!

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