For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अहंकार ना

कभी आ जाये हमें

दिन न आये |

 

मनमोहन

छेड़े बंसी की तान

झूमती आऊं |

 

तनहा तुम

देगा न कोई साथ

खयाल रहे |

प्रकृति हमें

देती सब संपदा

लगाएं वृक्ष |

 

समेट रही

आँचल में अपने

पुष्प बिखरे |

         

अजनबी हम

चलते रहे साथ

इक दूजे के |

 

माता का हाथ

रहे सदैव माथ 

धन्य जीवन |

 

पारिजात है

जमीं पर बिखरे

समेटूँ सारे |

 
मीना पाठक 
मौलिक/अप्रकाशित 

 

Views: 588

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on July 1, 2014 at 4:29pm

आदरणीय बृजेश जी ..आदरणीय बागी जी गलती स्वीकार करती हूँ ..आगे से ख्याल रखूँगी | सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 1, 2014 at 9:43am

सुंदर प्रस्तुति पर बधाई आपको आदरणीया मीना दीदी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 30, 2014 at 8:56pm

आदरणीया मीना जी, इस प्रस्तुति पर मैं बधाई प्रेषित कर रहा हूँ, यदि बृजेश भाई न लिखे होते तो मैं लिखता, सहमत हूँ आपसे बृजेश जी। 

Comment by बृजेश नीरज on June 30, 2014 at 8:28pm
अच्छा प्रयास है। आपको बधाई।
हाइकु लिखते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि प्रत्येक पंक्ति अपने अर्थ के लिए पूर्ण और स्वतंत्र होती है। आपके कुछ हाइकु की पंक्तियाँ अपने अर्थ के लिए दूसरी पंक्ति पर निर्भर हैं।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 30, 2014 at 7:03pm

अद्भुत मीना जी /बहुत चुने शब्द /बहुत सुन्दर भाव / आपसे एक सशोधन चाहूँगा--

                                                                                                           अजनबी थे

                                                                                                           चलते रहे साथ

                                                                                                           इक दूजे के |

Comment by Pankaj Trivedi on June 30, 2014 at 6:54pm
सम्माननीय मीना जी, ओबीओ पर 'इस माह के सक्रीय सदस्य' के रूप में आपका सम्मान हो रहा है, मेरी दिल से शुभ कामनाएँ है कि आप सदा अग्रेसर रहें और अपनी सृजनात्मकता का उजास दुनिया में फैलें | बधाई - पंकज त्रिवेदी
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 30, 2014 at 6:53pm
बहुत सुन्दर रचना है आदरणीय सुश्री मीना पाठक जी , बधाई . प्रथम पंक्तियों में तो एक जीवन दर्शन है -

अहंकार ना
कभी आ जाये हमें
दिन न आये |
बहुत बहुत बधाई।
बस इतना ही -
एक हम हैं ,
ये अहंकार आ न जाए .
एक वो हैं ,
ये अहंकार चला न जाए .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"ऐसे😁😁"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"अरे, ये तो कमाल  हो गया.. "
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश भाई, पहले तो ये बताइए, ओबीओ पर टिप्पणी करने में आपने इमोजी कैसे इंफ्यूज की ? हम कई बार…"
12 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके फैन इंतज़ार में बूढे हो गए हुज़ूर  😜"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
17 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service