For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जोड़ना आता नहीं पर बाँटनें की फितरतें -ग़ज़ल

2122    2122    2122    212
******************************
पाँव  छूना  रीत  रश्में  मानता  अब  कौन  है
सर पे आशीषों  की छतरी तानता  अब कौन है
***
जोड़ना  आता  नहीं पर ,  बाँटनें   की  फितरतें
धर्म हो  या  हो सियासत  जानता अब  कौन है
***
रो रहे क्यों वाक्य को तुम  मानने की जिद लिए
शब्द  भर  बातें  सयानों  मानता  अब  कौन है
***
सिर्फ दौलत  को यहाँ  पर रोज  भगदड़ है मची
प्यार की  खातिर  मनों को  छानता अब कौन है
***
सबको मंजिल की ‘मुसाफिर’ है तलब तो खूब पर
पाक  राहें   भी   रहें   ये   ठानता   अब  कौन  है

***
(रचना- 25 मई 2012)

मौलिक और अप्रकाशित

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 711

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 26, 2014 at 9:58am


आदरणीय भाई गिरिराज जी आपसे प्रशंसा पाकर लग रहा है कि गजल लेखन की राह पर ठीक ठाक चल पा रहा हूं । आप सभी का स्नेह इसी प्रकार मिलता रहे यही अभिलाषा है । धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 26, 2014 at 9:58am


आदरणीय भाई  जितेन्द्र जी , यह आप सब का स्नेह ही है जिसकी वजह से गजल सुंदर बन पड़ी है । उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 26, 2014 at 9:58am

आदरणीय भाई शिज्जू जी , गजल की प्रशंसा कर उत्साह वर्धन के लिए दिली धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 26, 2014 at 9:46am


आदरणीय कुंती दी , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 26, 2014 at 9:45am


आ0 गीतिका जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 26, 2014 at 9:45am


आदरणीया राजेश बहन, गजल की प्रशंसा के लिए आभार । आपका स्नेहाशीष मिलता रहे यही कामना है । धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 26, 2014 at 9:45am


आदरणीय भाई अभिनव अरूण जी इस गजल का श्रेय आप सब के प्रेम और आशीष को ही जाता है । प्रशंसा के लिए दिली बधाई स्वीकारें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 26, 2014 at 9:44am

आदरणीय भाई गोपाल नारायण जी , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 26, 2014 at 9:44am

आदरणीय भाई विजय शंकर जी , गजल का अनुमोदन कर उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by नादिर ख़ान on June 25, 2014 at 10:55pm

पाँव  छूना  रीत  रश्में  मानता  अब  कौन  है 
सर पे आशीषों  की छतरी तानता  अब कौन है

जोड़ना  आता  नहीं पर ,  बाँटनें   की  फितरतें
धर्म हो  या  हो सियासत  जानता अब  कौन है 

वाह आदरणीय लक्ष्मण जी क्या खूब कहा ...बेहद उम्दा बात कही 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service