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जोड़ना आता नहीं पर बाँटनें की फितरतें -ग़ज़ल

2122    2122    2122    212
******************************
पाँव  छूना  रीत  रश्में  मानता  अब  कौन  है
सर पे आशीषों  की छतरी तानता  अब कौन है
***
जोड़ना  आता  नहीं पर ,  बाँटनें   की  फितरतें
धर्म हो  या  हो सियासत  जानता अब  कौन है
***
रो रहे क्यों वाक्य को तुम  मानने की जिद लिए
शब्द  भर  बातें  सयानों  मानता  अब  कौन है
***
सिर्फ दौलत  को यहाँ  पर रोज  भगदड़ है मची
प्यार की  खातिर  मनों को  छानता अब कौन है
***
सबको मंजिल की ‘मुसाफिर’ है तलब तो खूब पर
पाक  राहें   भी   रहें   ये   ठानता   अब  कौन  है

***
(रचना- 25 मई 2012)

मौलिक और अप्रकाशित

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 667

Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 9, 2014 at 11:44am

आ0 भाई सौरभ जी , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 9, 2014 at 11:43am

आ0 प्राची बहन , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 2:54am

सबको मंजिल की ‘मुसाफिर’ है तलब तो खूब पर
पाक  राहें   भी   रहें   ये   ठानता   अब  कौन  है ..

वाह !

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 3, 2014 at 2:08pm

बढ़िया अशआर कहे हैं आ० लक्ष्मण धामी जी 

रो रहे क्यों वाक्य को तुम  मानने की जिद लिए
शब्द  भर  बातें  सयानों  मानता  अब  कौन है.....सही कहा 

हार्दिक बधाई 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 27, 2014 at 11:58am

आदरणीय भाईअरुन शर्मा जी , गजल की प्रशंसा कर उत्साह वर्धन के लिए दिली धन्यवाद ।

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 26, 2014 at 1:02pm

बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है आपने लक्ष्मण भाई मजा आ गया बधाई स्वीकारें.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 26, 2014 at 9:59am


आदरणीय भाई नादिर खान जी , असआरों की प्रशंसाकर उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद । स्नेह बनाए रखें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 26, 2014 at 9:59am


आ0 अनुपमा बहन , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 26, 2014 at 9:59am


आदरणीय भाई जवाहरलाल जी आपको गजल अच्छी लगी यह मेरे लिए सौभग्य की बात है । आप सभी का स्नेह निरंतर लिखने की प्रेरणा देता रहता है । धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 26, 2014 at 9:59am

आदरणीय भाई नरेन्द्र जी , उत्साहवर्धन के लिए कोटि कोटि आभार ।

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