For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“माँ !  मैं तुम्हारे और दोनों भाइयों के हाथ जोडती हूँ, मुझे कुछ पैसे दे दो या दिलवा दो.. भगवान् के लिए मदद करो.. चार दिनों बाद बेटी की शादी है..”

“देखो दीदी..! .. हमने हर समय तुम्हारा बहुत साथ दिया है.. यहाँ तक कि तुम्हारी दोनों बेटियों की शादी का पूरा खर्च वहन करने की सोचे थे. बेटे को भी काम-धंधे पर लगवा देंगे..  लेकिन तुमने निकम्मे जीजाजी.. और लोगो के कहने पर हम पर ही मुकदमा दायर कर दिया.. ? क्या तो हिस्सा पाने की खातिर ?!! ”

“माँ, तुम तो कुछ बोलो, तुम्ही समझाओ न.. इन दोनों को.. ”

“ बेटी..! मैं क्या समझूँ.. मैं क्या समझाऊँ ? यह सब तो तुम्हें सोचना था. ये जो तेरे भाइयों को पैसा मिला है न.. वो बाँध में जमीनों के डूबने के ऊपर पुनर्स्थापन का पैसा है..   और, मुझे तो इन्हींके साथ रहना है.. “

जितेंद्र  'गीत'
(मौलिक व्   अप्रकाशित )

   

Views: 681

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 12, 2014 at 1:51pm

रचना पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभार आदरणीया राजेश दीदी

सादर!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 11, 2014 at 7:45pm

जीतेंद्र जी

अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 11, 2014 at 9:56am

क्या पुनर्स्थापन का पैसा सिर्फ बेटों का है? क्या वो जमीन बेटी की भी उतनी ही नहीं थी जितनी की बेटों की ?

क्या माँ का पुत्रों पर आश्रिता बन जाना और अपनी बेटी के लिए चाह कर भी कुछ नहीं कर पाना समाज के एक कडवे सच को नहीं दर्शा रहा ?

बेटी यदि अपने हक़ की माग करती है क़ानून की मदद से तो क्या गलत है?

समाज में आज भी बेटियों को बेटों के जितने अधिकार नहीं दिए जाते.. उसे आत्म निर्भरता की नहीं आश्रिता की ज़िंदगी मिलती है .... कभी पिता पर पति पर बेटों पर या भाइयों पर!!! कितना दयनीय है 

एक सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आ० जितेन्द्र जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 10, 2014 at 11:35am

पिस तो बीच में लड़की ही रही ना ? पति की बात नहीं मानेगी तो उधर से धक्के ,मायके वालों की नहीं सुनेगी तो इधर से धक्के ...यही तो विडम्बना है ,थी और रहेगी यदि लड़कियां आत्मनिर्भर और मजबूत ,समझदार नहीं बनेगी ....क्या उस पति की जिम्मेदारी नहीं है अपने बच्चों की शादी या पालन पोषण की ?ऐसे पति को क्या कहें जो पत्नी को बीच में मोहरा बनाए हुए है .बहुत अच्छे सामयिक विषय पर लघु कथा लिखी है जितेन्द्र भैय्या जो हर द्रष्टि कोण से मस्तिष्क मंथन कराने में कामयाब है |बहुत- बहुत बधाई. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
yesterday
Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service