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जेठ की तपती दुपहरी!

जेठ की तपती दुपहरी!

जेठ की तपती दुपहरी, लगे नीरव शांत।
धूप झुलसा रही काया, स्वेद से मन क्लांत।।
शाख पर पक्षी विकल है, गेह में मनु जात।
सूर्य अम्बर आग उगले, जीव व्याकुल गात।१।

जल भरी ठंडी सुराही, पान कर मन तुष्ट।
दूध माखन और मठठा, तन करे है पुष्ट।।
पना अमरस संग चटनी, भा रहे पकवान।
कर्ण को मधुरिम लगे फिर, आज कोयल गान।२।

गूँजता अमराइयों में, बिरह पपिहा राग।
गाँठकर छाया दुपहरी, पढ़ रही निज भाग।।
कृष हुई सरिता निराली, सूख मंथर चाल।
फूल गुलमोहर खिले हैं, आज देखो लाल।३।

शयन गृह वातानुकूलित, पेय शीतल मांग।
मन ललचता देख कुल्फी, ठण्डई औ भांग।।
ग्रीष्म ऋतु की छुट्टियों में, सुरमई हो शाम।
घूमकर शिमला मनाली, कर रहे विश्राम।४।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Satyanarayan Singh on May 22, 2014 at 10:00pm

सादर आभार आदरणीया मीना जी 

Comment by Satyanarayan Singh on May 22, 2014 at 9:57pm

प्रस्तुत  रचना मदन/रूपमाला छंद पर आधारित है दोहे छंद पर नही बहरहाल  रचना के भाव एवं शब्द सयोजन आपको अच्छा लगा यह जानकार मन हर्षित हुआ अतएव आपका सादर आभार  आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन जी 

 

Comment by Satyanarayan Singh on May 22, 2014 at 9:51pm

सादर आभार आदरणीय श्याम नारायण जी 

Comment by Satyanarayan Singh on May 22, 2014 at 9:51pm

सादर आभार आदरणीय शिज्जू जी 

Comment by Satyanarayan Singh on May 22, 2014 at 9:50pm

सादर आभार आ. अरुण निगम जी  

Comment by vijay nikore on May 22, 2014 at 10:10am

बहुत सुन्दर भाव हैं। आपको बधाई आदरणीय

Comment by annapurna bajpai on May 21, 2014 at 7:07pm

vaah , sundar chhand apko bahut badhai 

Comment by Sushil Sarna on May 21, 2014 at 5:45pm

ऋतु अनुरूप सुंदर प्रस्तुति   .... बधाई स्वीकार करें 

Comment by Meena Pathak on May 21, 2014 at 12:06pm

सुन्दर ..मनभावन रचना ... बधाई स्वीकारें 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 21, 2014 at 11:46am

भाव सुन्दर है i शब्द्संयोजन भी अच्छा है i परन्तु दोहे का शिल्प कठिन होता है मित्र  i  'समूह' में सौरभ जी का दोहे पर लिखा आर्टिकल अवश्य पढ़े i आपकी भावनाओ में चार  चाँद लग जायेंगे i

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