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दिल के वो बरक़रार हिस्सों में

जिसने तोड़ा हज़ार हिस्सों में

दिल के वो बरक़रार हिस्सों में

 

रोए, मुस्काए, चीखे, झुंझलाए

दिल का निकला ग़ुबार हिस्सों में

 

सबसे बदतर रहा  यह बटवारा

एक परवरदिगार हिस्सों में

 

रूह, कल्बो जिगर व साँसों के

वो अकेला शुमार हिस्सों में

 

हमको तसलीम है करो तकसीम

हाँ मगर शानदार हिस्सों में

 

आप शामिल रहे कहीं ना कहीं

ज़ीस्त के यादगार हिस्सों में

 

मौत साँसों की किश्ते आखिर थी

चुक गया सब उधार हिस्सों में

Asif Amaan

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by अरुन 'अनन्त' on May 16, 2014 at 12:20pm

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मखबून पर बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही है आपने आसिफ भाई जी इस हेतु मेरी ओर से बधाई प्रेषित है स्वीकार कीजिये.

१. रोए, मुस्काए, चीखे, झुंझलाए... झुँझलाये होना चाहिए था.

२. रूह, कल्बो जिगर में, साँसों में

वो अकेला शुमार हिस्सो में... तकबुले रदीफ़ का दोष प्रतीत होता है आप भी देख लें.

३. हमको तसलीम है करो तकसीम... इसकी तक्तीअ २१२२, १२१२, २१२ है क्या २२ को २१२ किया जा सकता है मुझे भ्रम है.

Comment by Asif Amaan on May 14, 2014 at 12:01pm

laxman dhami ji behad shukriya aapki nawazish ka!!

Comment by Asif Amaan on May 14, 2014 at 12:00pm
Comment by Asif Amaan on May 14, 2014 at 11:57am

Shyam Narain Verma ji bahut bahut shukriya aapko muhabbatoN ka!!

Comment by Asif Amaan on May 14, 2014 at 11:56am

coontee mukerji saheba aapko sher pasand aaya, masarrat hui.. bahut shukriya!!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 14, 2014 at 11:27am

आदरणीय आसिफ भाई बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 14, 2014 at 7:31am

वो कहीं ना कहीं रहा शामिल

ज़ीस्त के यादगार हिस्सो में............वाह! क्या बात कही. हार्दिक बधाई आदरणीय आसिफ साहब

Comment by coontee mukerji on May 13, 2014 at 4:14pm

 

हमको तसलीम है करो तकसीम

हाँ मगर शानदार हिस्सो में.....क्या बात है.

 

Comment by Shyam Narain Verma on May 13, 2014 at 2:42pm
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय
Comment by Asif Amaan on May 13, 2014 at 10:19am

Meena Pathak saheba aapka ghazal pasand aai uske liye shukrguzaar hooN

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