For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता--मैं आज भी खडा हूँ उसी मोड़ पर

कभी जिस जगह हम मिले थे

जहाँ फूल मुहब्बत के खिले थे

मैं आज भी खड़ा हूँ उसी मोड़ पर

जहाँ तुम गये थे मुझे छोडकर

हँसी से कोई ऱिश्ता नहीं है

खुशी से दूर तक वास्ता नहीं है

जमाने की कितनी परवाह थी मुझे

अब जमाने की भी कोई परवाह नहीं है

गुजरते हैं लोग इस चौरेहे से

तेरी चर्चा करते हुये

मैंने बहुत को देखा है 

तेरे लिये आह भरते हुये

लेकिन उनकी आह भरने पर

मुझे तरस जरूर आता है

किआज भी हर कोई शख्स

तुझे पहचान नहीं पाता है

तेरे लुटे हुये को 

मैं कुछ आसरा देता हूँ

इसी बहाने आज भी

तेरा हाल जान लेता हूँ

उमेश कटारा

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 711

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 1, 2014 at 10:31pm

बहुत सुंदर रचना ,हार्दिक बधाई आपको आदरणीय उमेश जी

Comment by umesh katara on May 1, 2014 at 5:11pm

शुक्रिया डा.आशुतोष मिश्रा जी

Comment by umesh katara on May 1, 2014 at 5:11pm

शुक्रिया अखिलेश कृष्ण जी

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on May 1, 2014 at 1:27pm

आदरणीय उमेश भाई

यह मात्र कविता नहीं , बहुतॉं का यथार्थ है, हार्दिक बधाई 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 1, 2014 at 12:52pm

कभी जिस जगह हम मिले थे

जहाँ फूल मुहब्बत के खिले थे

मैं आज भी खड़ा हूँ उसी मोड़ पर

जहाँ तुम गये थे मुझे छोडकर

हँसी से कोई ऱिश्ता नहीं है....manbhavan is shandar rachna ke liye tahe dil badhaaayee saadar 

Comment by umesh katara on May 1, 2014 at 8:02am

शुक्रिया कुन्ती मुखर्जी मैम आपका तहेदिल से शुक्रिया

Comment by umesh katara on May 1, 2014 at 8:01am

शुक्रिया श्याम जी 

Comment by umesh katara on May 1, 2014 at 8:00am

शुक्रिया अखण्ड गहमरी जी

Comment by umesh katara on May 1, 2014 at 7:59am

शुक्रिया रमेश जी

Comment by रमेश कुमार चौहान on April 30, 2014 at 2:27pm

आदरणीय कटाराजी इस सुंदर रचना के लिये बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service