For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सात दोहे – '' रिश्ते ''

*******    ******

नाराजी जो है कहीं , मिल के कर लो बात

खामोशी  देती  रही , हर  रिश्ते  को मात

 

रिश्तों  को  भी चाहिये , इन्जन जैसे तेल

बिना  तेल  देखे बहुत , झटके खाते मेल                            

 

तेरा  घोड़ा  तेज़  है , माना  मेरा  सुस्त

देखो  रिश्ता  हो  गया , पहले जैसे चुस्त

 

तू  माने  खुद को बड़ा , तो मैं भी हूँ शेर

बढ़ने  में  अब  दूरियाँ , नहीं लगेगी  देर

 

आपस की  कमियाँ भरें , यारी की  ये रीत

यही बढ़ाती  है  सदा , हर  नाते  में प्रीत

 

हाथ मिला के कब हुआ, मन से मन का मेल

ये भावों की बात है , ये अन्दर का खेल

 

मैं जैसा भी हूँ अभी , जो कर ले स्वीकार

उसकी सारी ग़लतियों, से मुझको भी प्यार   

***********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

Views: 1396

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Akash Verma on March 19, 2014 at 5:20pm

पढ़कर मन को ख़ुशी मिली और जीवन को जीने का एक नया अंदाज मिला , इन दोहो के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद्, आशा है आप आगे भी इसी तरह हमारा मार्गदर्शन अपने दोहो से करते रहेंगे। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 15, 2014 at 12:31pm

आदरणीय भाई गिरिराज जी , सर्वश्रेष्ठ रचना चुने जाने पर हार्दिक बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 12, 2014 at 9:50pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , दोहों की सराहना के लिये आपका आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 12, 2014 at 9:49pm

आदरणीय प्रदीप कुशवाहा भाई जी , दोहों पर विस्तार से प्रतिक्रिया के लिये और सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ।।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 12, 2014 at 9:47pm

आदरणीय मनोज भाई ,  दोहों की सराहना के लिये आपका शुक्रिया ॥

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 12, 2014 at 8:48pm

अच्छे दोहे हैं गिरिराज जी, बधाई स्वीकारें 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 11, 2014 at 6:43pm

नाराजी जो है कहीं , मिल के कर लो बात

खामोशी  देती  रही , हर  रिश्ते  को मात...संवाद जरूरी है. बहुत सुन्दर शिक्षा 

 

रिश्तों  को  भी चाहिये , इन्जन जैसे तेल

बिना  तेल  देखे बहुत , झटके खाते मेल    ....रिश्ते बनाना जितना आसान निभाना उतना ही कठिन                         

 

तेरा  घोड़ा  तेज़  है , माना  मेरा  सुस्त

देखो  रिश्ता  हो  गया , पहले जैसे चुस्त....समय जरूर लगेगा रिश्ते सुधर भी सकते हैं 

 

तू  माने  खुद को बड़ा , तो मैं भी हूँ शेर

बढ़ने  में  अब  दूरियाँ , नहीं लगेगी  देर...दोनों पक्ष सामान्य रहें ..रिश्ते निभेंगे 

 

आपस की  कमियाँ भरें , यारी की  ये रीत

यही बढ़ाती  है  सदा , हर  नाते  में प्रीत..आदरणीय सुन्दर सीख 

 

हाथ मिला के कब हुआ, मन से मन का मेल

ये भावों की बात है , ये अन्दर का खेल....सत्य है 

 

मैं जैसा भी हूँ अभी , जो कर ले स्वीकार

उसकी सारी ग़लतियों, से मुझको भी प्यार   सुन्दर भाव 

जय हो मंगलमय हो 

सादर आदरणीय 

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 10, 2014 at 7:48pm

जग में सब नेता बने, कुल में सबका मान |

जग कुल दोनों नष्ट हो, कहते हैं विद्वान ||...

त्याग भाव ही मूल है, हर रिश्ते के साथ |

जिसके नाथ स्वयं प्रभू, वह है कहाँ अनाथ ||

धन्यवाद है आपको, समझ लिया है मर्म |

सुन्दर दोहों से निभा, कविताई का धर्म ||...बधाई हो आदरणीय


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 9, 2014 at 8:29am

आदरणीया वन्दना जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 9, 2014 at 8:27am

आदरणीय नादिर खान भाई , दोहावली की सराहना और उत्साह वर्धन करने के  लिये आपका आभारी हूँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service