For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कह मुकरियाँ (कल्पना रामानी)

इस विधा में मेरा प्रथम प्रयास(1से 10)

1)

रखती उसको अंग लगाकर।

चलती उसके संग लजाकर।

लगे सहज उसका अपनापन।

क्या सखि, साजन?

ना सखि, दामन!

 2)

दिन में तो वो खूब तपाए।

रात कभी भी पास न आए।

फिर भी खुश होती हूँ मिलकर।

क्या सखि साजन?

ना सखि, दिनकर!

 3)

वो अपनी मनमानी करता।

कुछ माँगूँ तो कान न धरता।

कठपुतली सा नाच नचाता।

क्या सखि साजन?

नहीं, विधाता!

 4)

भरी भीड़ में पास बुलाया।

गोद उठाकर चाँद दिखाया।

मन पाखी बन सुध-बुध भूला।

क्या सखि साजन?

ना री झूला!

 5)

दूर-दूर के नवल नज़ारे।

उसकी आँखों देखूँ सारे।

कभी न देता मुझको धोखा।

क्या सखि साजन?

नहीं, झरोखा!

 6)

रातों को वो मिलने आता।

नित्य नया इक रूप दिखाता।

लाज न आए, कैसा बंदा,

क्या सखि साजन?

ना सखि, चंदा!  

7) 

आते जाते मुझे निहारे।

पल-पल मेरा रूप सँवारे।

भला लगे उसका चिकना तन।

क्या सखि साजन?

ना सखि दर्पन!

८)

साथ चले जब सीना ताने।    

बात न वो फिर मेरी माने।    

हाथ छुड़ाकर भागा जाता।

क्या सखि साजन?

ना सखि, छाता!

9)

जब तब कर्कश बोल सुनाए।

मुँह खोले तो जी घबराए।

पाहुन को दे रोज़ बुलौवा।

क्या सखि, साजन?

ना सखि, कौवा!

10)

उसका काला रंग न भाए।

गुण भी कोई नज़र न आए।

फिर भी लट्टू है उसपे मन।

क्या सखि साजन?

ना सखि, बैंगन!

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1063

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on February 19, 2014 at 11:32pm

आदरणीय अशोक रक्ताले जी,  विजय जी, नीरज जी, आदरणीया अन्नपूर्णा जी, प्राची जी, आप सबका  प्रशंसात्मक टिप्पणियों के लिए हार्दिक आभार। प्राची जी, निर्दयी शब्द पर  मेरा ध्यान नहीं गया इसे निर्दय कर देने से भी वही अर्थ रहेगा। और 'दूल्हा'शब्द मिलता जुलता उच्चरित हो रहा है तो प्रयोग कर लिया, इसका विकल्प नहीं सूझा। कभी सूझ जाएगा तो बदल दूँगी।/सादर 

Comment by annapurna bajpai on February 19, 2014 at 6:37pm

आदरणीया कल्पना दीदी आपको बार बार प्रणाम करने को दिल कर रहा है ताकि आपके वरद हस्त से कुछ लाभान्वित होऊँ  । हर एक कह मुकरी लाजवाब है । सादर 

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 19, 2014 at 1:52pm

आदरणीया कल्पना रामानी जी सादर, बहुत ही सुन्दर कह-मुकरियाँ रची हैं. ११ से १६ में तो कमाल ही कर दिया. सभी कह-मुकरी छंदों के लिए दिली मुबारकबाद कुबूल करें. सादर.

गुनगुन कर हर छंद सजाए,

प्यारे-प्यारे गीत रचाए,

कह ना पाऊं उसको सपना,

क्या सखी साजन? नहि कल्पना ||

Comment by vijay nikore on February 19, 2014 at 10:18am

बहुत सुन्दर भावों से सजी कह मुकरियाँ मनभावन हैं।

Comment by Neeraj Neer on February 18, 2014 at 10:38pm

बहुत ही सुन्दर ख मुकरियां .. नब प्रसन्न हो गया ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 14, 2014 at 5:12pm

अहा ! अहा ! अहा ! 

बहुत खूबसूरत कह मुकरियाँ कही हैं आदरणीया कल्पना जी ...मन झूम झूम गया पढ़ कर.

अपनी ओरिजनेलिटी माधुर्य के साथ सभी की सभी बहुत पसंद आयीं .... ख़ास तौर से झूले वाली तो बहुत ज्यादा पसंद आयी 

बहुत बहुत बधाई 

लेकिन 'झूला' के साथ 'दूल्हा' का तुक मिलान कुछ कमज़ोर है और 

निर्दयी जब तब हाथ छुड़ाता।......इसमें मात्रा एक ज्यादा हो रही है 

क्या सखि साजन?

ना सखि, छाता!

इस सुन्दर प्रयास के लिए आपके मेरी दिली बधाई 

सस्नेह 

Comment by कल्पना रामानी on February 13, 2014 at 10:55pm

आदरणीय समस्त मित्रों का  रचना को स्नेह सम्मान देने के लिए हार्दिक आभार 

Comment by annapurna bajpai on February 13, 2014 at 8:22pm

आ0 कल्पना दीदी बहुत - बहुत खूबसूरत कह मुकरियाँ , बधाई आपको । 

Comment by राजेश 'मृदु' on February 13, 2014 at 6:30pm

दीदी, बड़ी इर्ष्‍या हो रही है आपसे, आप अद्भुत हैं और सर्वदा अनुकरणीय, सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 13, 2014 at 5:25pm

आदरणीया कल्पना जी ..आपके इस पहले प्रयास ने ही मन मोह लिया ...मैं इस बिधा को पहली बार पढ़ रहा हूँ ..आपको ढेर सारी बधाई ..सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service