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मौत आती है पर मरते-मरते

कोई कैसे सुने दास्ताँ मेरी

खुद को भूल जाते सुनते-सुनते.

 

वो भी साथ होते मेरे लेकिन

पांव थक जाते हैं चलते-चलते.

 

याद आती मुझे जब कभी उसकी

आँसू बहाते हैं चुपके-चुपके.

 

दिल बहुत चाहता आज हँसने को

आँख भर आती है हँसते-हँसते.

 

मर गये होते चाहत में उसके

मौत आती है पर मरते-मरते.

 

(मौलिक व अप्रकाशित )

अनिल कुमार 'अलीन'

Views: 688

Comment

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Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 18, 2014 at 6:17pm

आदरणीया!

............................आपका हार्दिक आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 18, 2014 at 2:41pm

सीखने की चाहत या जुनून है तो सीख जायेंगे यूँ ही लिखते लिखते ....बहुत सुन्दर प्रयास है कोशिश कीजिये विश्वास है इसी ग़ज़ल को एक दिन आप बेहतरीन बना कर पेश करेंगे शुभकामनायें हाँ इस प्रयास पर मेरी बधाई आपको 

Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 16, 2014 at 9:30pm

आप सभी आदरणीय जनों का हार्दिक आभार!

Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 16, 2014 at 9:29pm

आदरणीय आशुतोष जी यह मुझ द्वारा कोई प्रयास था ही नहीं और न ही मैं लिखा हूँ...............बस यह लिख गया है..............इस सिलसिले में जल्द ही प्रयास करने की कोशिश करूँगा............आपका सुझाव बहुमूल्य है और इस पर अमल शुरू कर दिया हूँ............आपका हार्दिक आभार!

Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 16, 2014 at 9:26pm

आदरणीय बृजेश जी,

ग़ज़ल लिखने का बहुत सुख है किन्तु अभी तक लिखा नहीं बल्कि जो कुछ है यह बस लिख गया है.............जल्द ही ग़ज़ल विधा को सीखकर आपकी सेवा में एक ग़ज़ल प्रेषित करूँगा............फिर आपकी बधाई भी स्वीकार करूँगा..............आशा करता हूँ आपका मार्गदर्शन और आशीर्वाद  सदैव मिलता रहेगा ......... हार्दिक आभार!

Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 16, 2014 at 9:21pm

आदरणीय लक्ष्मण जी सही फरमाया आपने...............बदलाव कर दिया हूँ किन्तु प्रदशित नहीं हो रहा ..............आपका हार्दिक आभार!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 8, 2014 at 12:45pm

आदरणीय आपके इस प्रयास पर आपको तहे दिल बधाई /// मैं अभी खुद सीख रहा हूँ इसलिए बिशेस जानकारी तो नहीं है पर अभी आपकी यह रचना ग़ज़ल के दर्जे में नहीं आती है ..ग़ज़ल केकुछ नियम है ..आदरणीय वीनस जी ने ग़ज़ल की बातें एवं आदरणीय तिलक जी ने ग़ज़ल की कक्षा के माध्यम से बहुत कुछ सिखाने का प्रयास किया हिया //आप उक्त दोनों से जुड़े और तमाम जानकारी प्रपत्र करें ..हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ..सादर 

Comment by बृजेश नीरज on February 8, 2014 at 11:43am

अच्छी ग़ज़ल है! इस प्रयास के लिए आपको हार्दिक बधाई!

कहन पर काम करने की जरूरत है!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 7, 2014 at 5:57am

आदरणीय भाई अनिल जी गजल के भाव अच्छे हैं . अगर

आँसू बहाते हैं कि बजाय 'अश्क बह जाते हैं'

करते तो मेरे हिसाब से जड़ा बेहतर लगता .वैसे प्रबुद्ध जनों कि प्रतिक्रिया का इंतजार करें .हार्दिक बधाई

Comment by coontee mukerji on February 6, 2014 at 10:30pm

मर गये होते चाहत में उसके

मौत आती है पर मरते-मरते..........बहुत खूब.

कृपया ध्यान दे...

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