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इक ज़ुरूरी बात थी

अनकही सी अनसुनी सी इक ज़ुरूरी बात थी ।
कह के भी कह ना सके कोई अधूरी बात थी ।

बोलने कि हद पे था प्यार का शैलाब पर ,
ना बोलने  की ज़िद पे भी इक गुरुरी बात थी ।

कोशिशें तो की बहुत इज़हारे उल्फत की मगर ,
लफ़्ज़ों में ना आ सकी दिल की पूरी बात थी ।

एकटक देखा उन्हें तो देखता ही रह गया ,
चाँद से चेहरे पे उनके कोहिनूरी बात थी ।

प्यार की खामोशियों में रंग भरने के लिए ,
उन लबों  की लालियों में एक सिन्दूरी बात थी ।

मौलिक व अप्रकाशित
नीरज 'प्रेम '

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 1, 2014 at 3:37am

बहुत कुछ सँभालने का प्रयास हुआ है. इसके लिए बधाई.

वैसे इस ग़ज़ल के अब भी कई मिसरो पर ध्यान जाने से रह गया है.  और, आप प्रयुक्त बह्र की मात्रा को भी अपनी प्रस्तुति के साथ लिख दिया करें जैसा कि इसी मंच के अन्य समृद्ध ग़ज़लकार करते हैं. इससे विधा की इज़्ज़त रह जाती है.

जैसे, इस ग़ज़ल को आपने २१२२ २१२२ २१२२ २१२ के वज़्न में बाँधने की कोशिश की है.

Comment by vijay nikore on January 29, 2014 at 2:39am

गज़ल में खयाल अच्छे लगे, बधाई।

Comment by Saarthi Baidyanath on January 28, 2014 at 11:00am

जिंदाबाद साहब ..क्या अशआर हुए हैं ..बहुत उम्दा 

अनकही सी अनसुनी सी इक ज़ुरूरी बात थी । 
कह के भी कह ना सके कोई अधूरी बात थी ।...लाजवाब 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 28, 2014 at 10:33am

आदरणीय नीरज जी . मैं तो बस इतना कहूँगा अआप्की ग़ज़ल में भी गजब दिलकश हँसी सी बात थी .आपसे पहल बार मुखातिव हुआ ..वाकई कमाल के ग़ज़ल ..ढेरों बधाई कवूल करें ..सादर 

Comment by वीनस केसरी on January 28, 2014 at 1:38am

सुन्दर प्रयास है भाई ... लगे रहिये ... मंज़िल दूर नहीं


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 27, 2014 at 6:37pm

आदरणीय नीरज प्रेम भाई , बहुत सुन्दर रचना की है , आपको बधाइयाँ !! लेकिन ग़ज़ल के शिल्प के लिहाज़ से कमियाँ हैं ॥

Comment by Meena Pathak on January 27, 2014 at 5:21pm

बहुत उम्दा 

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