For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आत्म-धन - (विजय निकोर)

आत्म-धन

 

होगी ज़रूर कोई गहरी पहचान

दर्द की तुम्हारे इस दर्द से मेरे

कि जाने किन-किन तहों से उभरती

छटपटाती

लौट आती है वही एक याद तुम्हारी

यादों के कितने घने अँधियाले

पेड़ों के पीछे से झाँकती ...

मैंने तो कभी तुमको

इतना स्नेह नहीं दिया था

भीगी आँखों से, हाँ,

भीगी आँखों को देखा था

कई बार... खड़े-खड़े ...  चुपचाप

 

पंख कटे पक्षी-सा तड़पता

ठहर नहीं पाता है मन पल-भर कहीं

तुम्हारा .... न मेरा

सुलगती है ऐसे में आग नित्य अकस्मात

अर्थहीन असंतोष की

कुछ जल्दी मुरझा जाता है हर दिन हमारा

झुक आती है झट पहचानी साँझ संवलाई

और उभर-उभर आते हैं

कितने नए-नए सवालों के अनजाने कर्ज़ 

भीतरी अँधेरे भयानक वीरानों से

कई घने पुराने कितने

बड़े-बड़े  दर्द

 

... मेरे आत्म-धन

 

                 -------

                                        --- विजय निकोर

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

Views: 792

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on February 14, 2014 at 8:57am

//अद्भुत ! इन मनोभावनाओं केलिए हृदय से बधाई//

आपके यह शब्द मेरे लिए बहुत प्रेरणादायक हैं, आदरणीय सौरभ जी। आपका हार्दिक धन्यवाद।

Comment by vijay nikore on February 14, 2014 at 8:54am

//अंतर्वेदना को बहुत गहरे भाव मिले, मौन रहकर भी सब कुछ बयां करती पंक्तियाँ//

 

रचना को इतना मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय जितेन्द्र जी।

Comment by vijay nikore on February 11, 2014 at 1:09pm

रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय शिज्जु जी।

Comment by vijay nikore on February 11, 2014 at 1:08pm

 

//मधुर संबंधों के दर्द को दिल मे छुपाये गहरी अनुभुतियों से रचि रचना //

 

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी।

Comment by vijay nikore on February 11, 2014 at 11:56am

 

//समर्पण भाव का हृदयस्पर्शी चित्रण//

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय अरून जी।

Comment by vijay nikore on February 10, 2014 at 7:03am

// अनकहे प्रेम की गहरी अनुभूतियों की झलक देती  सुन्दर रचना के लिये  बहुत बधाई //

 

ऐसी सुन्दर सराहना के लिई आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।

Comment by vijay nikore on February 6, 2014 at 11:18am

//श्रद्धेय, अप्रतिम है आपकी सोच इन पंक्तियों में. आपकी सभी रचनाओं में अनकही दार्शनिकता रचना के स्तर को एक अनुपम आकाश प्रदान करती है. यहाँ भी कोई व्यतिक्रम नहीं है. अंतस को बड़ी तृप्ति मिली. शतेक नमन.//

 

मेरे भाई शरदिन्दु जी, मान..., इतना मान.... माँ सरस्वती मेरी लेखनी को इस योग्य बनाए रखें...आपका हार्दिक आभार, भाई जी।

Comment by vijay nikore on January 31, 2014 at 8:36am

//अनकहे प्रेम की गहरी अनुभूतियों की झलक देती आपकी बहुत सुन्दर कविता//

 

इस सम्मान के  लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय भाई गिरिराज जी।

आशा है आपसे प्रेरणा मिलती रहेगी।

Comment by vijay nikore on January 31, 2014 at 8:35am

 

//कुछ रिश्तों में लेन-देन जरुरी नहीं होता शायद .....बस महसूस करना उसके होने को ....यही उसके मायने होते है .....हर शब्द दिल से गुज़र गया .....लाजवाब ...बहुत खूबसूरत और भावनाओं से लबरेज़ रचना//

कविता के भाव को इस प्रकार अनुभव करने के लिए एक विशेष प्रवृत्ति चाहिए ... जो आप में है। रचना को इस तरह महसूस करने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया प्रियंका जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 30, 2014 at 4:34pm

//अर्थहीन असंतोष की

कुछ जल्दी मुरझा जाता है हर दिन हमारा

झुक आती है झट पहचानी साँझ संवलाई

और उभर-उभर आते हैं

कितने नए-नए सवालों के अनजाने कर्ज़//

अद्भुत ! इन मनोभावनाओं केलिए हृदय से बधाई आदरणीय विजय भाई जी..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
11 hours ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार । भविष्य के लिए  अवगत…"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय  अशोक रक्ताले जी सृजन को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । बहुत सुन्दर सुझाव…"
12 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. शिज्जू भाई,एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.मैं देखता हूँ तुझे…"
15 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . लक्ष्य

दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्यकैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास । लक्ष्य  भेद  का मंत्र है, मन …See More
17 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान…"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
19 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
19 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service