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मगर फिर चार दिन की ये जवानी कौन देता है...

पहले मौत दे, फिर जिंदगानी कौन देता है
मुकम्मल हो सके ऐसी कहानी कौन देता है,

यहां तालाब और नदियां कई बरसों से सूखी हैं
खुदा जाने कि पीने को ये पानी कौन देता है,

हमें तो जिंदगी ठहरी हुई इक झील लगती है
मगर हर वक्त दरिया को रवानी कौन देता है,

जमीं से आसमां तक का सफर हम कर चुके लेकिन
नहीं मालूम मंजिल की निशानी कौन देता है,

परिंदे जानते हैं ये कि पर कटने का खतरा है
इन्हें फिर हौसला ये आसमानी कौन देता है,

अतुल ये जानता हूं कि बुढापा आएगा इक दिन
मगर फिर चार दिन की ये जवानी कौन देता है।।

 — अतुल कुशवाह

- मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by atul kushwah on February 4, 2014 at 11:57pm

आ.कूंटी जी, अरुण जी, कल्पना जी, राहुल देव जी, डॉ.प्राची जी और लक्ष्मण धामी जी...आप सबकी प्रेरक प्रतिक्रियाओं के लिए आप सबका बहुत सारा आभार और शुक्रिया। और आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर, आपने जो मार्गदर्शन कराया है, उसे मैं अब हमेशा ध्यान रखूंगा और काव्य लेखन को व्याकरण के अनुरूप ही ढालने की कोशिश करूंगा।
सादर
अतुल

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 24, 2014 at 5:53am

आदरणीय अतुल भाई एक अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई

परिंदे जानते हैं ये कि पर कटने का खतरा है
इन्हें फिर हौसला ये आसमानी कौन देता है,.............बहुत  खूब


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 24, 2014 at 3:09am

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ यनि मुफ़ाईलुन की चार आवृतियों पर कही इस ग़ज़ल के मतले के साथ क्या कर दिया है आपने ?

या अनायास ही अशार के मिसरे हजज के अनुसार सध गये हैं ?

मक्ते में भी परेशानी हुई है.  उला का कि गलत है/

शुभेच्छाएँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 23, 2014 at 12:15pm

परिंदे जानते हैं ये कि पर कटने का खतरा है
इन्हें फिर हौसला ये आसमानी कौन देता है,.........हौसलों की इस उड़ान को मेरी बहुत बहुत बधाई 

Comment by कल्पना रामानी on January 20, 2014 at 6:36pm

हर शेर लाजवाब! बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय अतुल जी 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 20, 2014 at 4:07pm

अतुल भाई बेहद सुन्दर ग़ज़ल सभी शेर अच्छे लगे पसंद आये वीनस भाई जी जिस ओर इशारा किया है उसे देख लें.  मेरी ओर से बधाई स्वीकारें.

Comment by coontee mukerji on January 20, 2014 at 3:39pm

बहुत सुंदर....गज़लों के सहारे आने बहुत कुछ कहा है. हार्दिक बधाई.

Comment by atul kushwah on January 20, 2014 at 3:19am
Adarneey Venus ji...is nadan koshish ko aapki sarahna mili...ye badi baat hai...sujhav aur margdarshan satat chahta hu....sadar-Atul
Comment by वीनस केसरी on January 20, 2014 at 2:52am

परिंदे जानते हैं ये कि पर कटने का खतरा है
इन्हें फिर हौसला ये आसमानी कौन देता है .... शानदार शेर कहा है .. हासिले ग़ज़ल है

मतला और मक्ता पर बहर के एतबार से नज़ारे सानी फरमाएं

Comment by vandana on January 19, 2014 at 7:48am

हमें तो जिंदगी ठहरी हुई इक झील लगती है
मगर हर वक्त दरिया को रवानी कौन देता है,

जमीं से आसमां तक का सफर हम कर चुके लेकिन
नहीं मालूम मंजिल की निशानी कौन देता है,

परिंदे जानते हैं ये कि पर कटने का खतरा है
इन्हें फिर हौसला ये आसमानी कौन देता है,

बहुत बढ़िया आदरणीय अतुल जी 

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