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कितनी दूर से बुलाये गये 
नाचने वाले सितारे 
कितनी दूर से मंगाए गए 
एक से एक गाने वाले 
और तुम अलापने लगे राग-गरीबी 
और तुम दिखलाते रहे भुखमरी 
राज-धर्म के इतिहास लेखन में 
का नही कराना हमे उल्लेख 
कला-संस्कृति के बारे में...

का कहा, हम नाच-गाना न सुनते 
तो इत्ते लोग नही मरते...
अरे बुडबक...
सर्दी से नही मरते लोग तो 
रोड एक्सीडेंट से मर जाते 
बाढ़ से मर जाते 
सूखे से मर जाते 
मलेरिया-डेंगू से मर जाते 
कुपोषण से मर जाते 
अरे भाई...माल्थस का भूत मरा थोडई है..
हम भी पढ़े-लिखे हैं 
जाओ पहले माल्थस को पढ़ आओ...

अरे भाई कित्ता लगता है
एक जान के पीछे पांच लाख न...
विपक्ष भी सत्ता में होता तो 
इतना ही न ढीलता...
हम भी तो दे रहे हैं 
फिर काहे पीछे पड़े हो हमारे...

अपने गाँव-गिरांव के आम जन को 
हम दिखा रहे नाच, सुना रहे गाने 
मिटा रहे साथ-साथ, राज-काज की थकावटे
राज-काज आसान काम नही है बचवा...
न समझ आया हो तो जाओ 
जो करते बने कर लो....

.
----अ न व र सु है ल ------

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by रमेश कुमार चौहान on January 16, 2014 at 10:30pm
वाह क्या गजब का अंदाज है । इस समसमायिक प्रस्तुति पर बधाई

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 16, 2014 at 10:09pm

आदरणीय अनवर साहब. इस तेवर में पहली दफ़ा में आपको पढ़ रहा हूँ.

सादर बधाइयाँ

Comment by annapurna bajpai on January 16, 2014 at 7:25pm

आ0 अनवर जी सुंदर रचना बधाई । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 16, 2014 at 5:59pm

आदरणीय अनवर साहब इस उम्दा रचना के जरिये ऐसा जोरदार तमाचा जड़ा है कि बस आनंद आ गया. शानदार अभिव्यक्ति बेहतरीन अंदाज बहुत बहुत बधाई आपको.

Comment by Mukesh Kumar Sinha on January 16, 2014 at 9:54am
gajab!!
Comment by सूबे सिंह सुजान on January 15, 2014 at 11:04pm

वाह क्या बात कही .....है

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 15, 2014 at 7:00pm
ये सब माल्थस के भूत ने किया है?
गजब
मुझे भी मिला था, माल्थस का भूत
जाने कितने ही और लोगों को भी मिलता होगा
रोज
हर कदम हर मोड़ पर
और यह भूत जब मिल जाता है राजनीति के बड़के बरम से
तब हो जाता है इसका पॉवर दो गुना
फिर ये मिल कर करते हैं सैफई तांडव
होना भी चाहिये।

कमाल है जोरदार आपको बधाई अनवर सुहेल जी!

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 15, 2014 at 3:10pm

आदरणीय अनवर सुहैल जी, व्यंग का स्वर मुखर होकर बोल रहा है, बोल ही नहीं रहा बल्कि लतिया रहा है, क्या खूबसूरती से तमाचा मारा है,

//का कहा, हम नाच-गाना न सुनते 
तो इत्ते लोग नही मरते...
अरे बुडबक...
सर्दी से नही मरते लोग तो 
रोड एक्सीडेंट से मर जाते 
बाढ़ से मर जाते 
सूखे से मर जाते 
मलेरिया-डेंगू से मर जाते 
कुपोषण से मर जाते //

आय हाय हाय, जोरदार प्रहार किया है भाई, जबर्दस्त, बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें, ऐसी रचनाएं रोज जन्म नहीं लेतीं |

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