For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बह्रे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
2122/ 2122/ 212


जाँ तेरी ऐसे बचा ली जाएगी;
हर तमन्ना मार डाली जाएगी; ।।1।।


बंदरों के हाथ में है उस्तरा,
अब विरासत यूँ सँभाली जाएगी;।।2।।


इक नज़ूमी कह रहा है शर्तियः,
दिन मनव्वर रात काली जाएगी;।।3।।


जब सियासत ठान ली तो जान लो,
हर जगह इज़्ज़त उछाली जाएगी;।।4।।


कर के वादा तू मुकरता है तो सुन,
आज तेरी बात टाली जाएगी;।।5।।


मैं नहीं आता अगर होती ख़बर,
दास्ताँ कोई फिर बना ली जाएगी;।।6।।


हश्र देखा इश्क़ का जो, हमसे अब,
प्यार की हसरत न पाली जाएगी;।।7।।


मुख़्लिसी-ज़िंदादिली क़ाइम रहे,
यार दौलत फिर कमा ली जाएगी;।।8।।


ज़िंदगी आएगी कब तू घर मेरे,
जल्द तुझसे इंतिक़ा ली जाएगी;।।9।।


गर न हारो हौसला तो तैशुदा,
हर मुसीबत पार पा ली जाएगी;।।10।।


चुप रहा 'वाहिद अगर महफ़िल में कल,
नज़्म उसकी गुनगुना ली जाएगी;।।11।।

.

वाहिद काशीवासी {11012014}

************************************
नज़ूमी=ज्योतिषी; मनव्वर=उजला; मुख़्लिसी=निश्छलता; इंतिक़ा=स्वीकृति

************************************

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1120

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रोहिताश्व मिश्रा on November 22, 2015 at 4:39pm
Bhai ji _____/\______
Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 17, 2014 at 6:11pm

बंदरों के हाथ में है उस्तरा,
अब विरासत यूँ सँभाली जाएगी;।।2।।......बहुत खूब भाई...................

Comment by वीनस केसरी on January 18, 2014 at 9:14pm

//-- अरूजनुसार "कोई" को = २२, १२, २१ और २ के वज्न में बाँध सकते हैं मगर २ के वज्न में बाँधने से बचना चाहिए क्योकि फिर शब्द को बहुत गिरा कर पढ़ना होता है और गति से आगे बढ़ जाना होता है जिससे मात्र का संयोजन गडबड न हो ...//

संदीप भाई अभी मैंने २ साल पुराना लिंक देखा तो पाया की मैंने खुद गलत बयानी कर रखी है, स्वीकारता हूँ कि मैंने इस लिंक पर जो ये बात कही है =

// २ के वज्न में बाँध सकते हैं मगर २ के वज्न में बाँधने से बचना चाहिए क्योकि फिर शब्द को बहुत गिरा कर पढ़ना होता है और गति से आगे बढ़ जाना होता है जिससे मात्र का संयोजन गडबड न हो ...// 

ये अरूज़ के अनुसार गलत है इसे सही करना होगा ....

मेरे दो साल पुराने कहे के कारण यदि किसी को गलत जानकारी साझा हुई है तो मैं खेद प्रकट करता हूँ
मेरी जानकारी में अरूज़ अनुसार कोई को २ मात्रा में किसी दशा में नहीं कर सकते ....



Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on January 18, 2014 at 8:38pm

भाई वीनस  जी,

आपकी मुबारकबाद क़बूल है! :-) देर से ही सही किन्तु अच्छा लगा!

//अगर अपनी जान बचाने की बात की गयी होती //मत्ले में स्वयं को 'सब्जेक्ट' रखते हुए ये कहने का प्रयास किया है कि मुझसे ये बात कही जा रही है!

रही बात 'कल' की तो जब तक 'वाहिद' है तब तक तो ठीक है किन्तु यदि वह न रहे तो? फ़िलहाल अभी तक तो वह उपलब्ध है ही! :-)
कोई की मात्रा की बात पर मैं यही कहूँगा कि आपने एक बार इस ओर इंगित किया था बतौर आपकी ही इबारत में --

// अरूजनुसार "कोई" को = २२, १२, २१ और के वज्न में बाँध सकते हैं मगर २ के वज्न में बाँधने से बचना चाहिए क्योकि फिर शब्द को बहुत गिरा कर पढ़ना होता है और गति से आगे बढ़ जाना होता है जिससे मात्र का संयोजन गडबड न हो // जहाँ आपने यह बात कही थी उसका लिंक आदरणीय गिरिराज जी को भी दिया है और आपको भी दे रहा हूँ .. (http://www.openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:2096...) शेष आपने सब स्पष्ट कर ही दिया है! :-) सादर,

Comment by वीनस केसरी on January 18, 2014 at 8:25pm

भाई बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है ..
ढेरो मुबारकबाद पेश करता हूँ ... हर एक शेर में तागज्जुल से रू-ब-रू हुआ ...

जाँ तेरी ऐसे बचा ली जाएगी;
हर तमन्ना मार डाली जाएगी;
बहुत शानदार मतला है ,,, मगर और खूबसूरत हो जाता अगर अपनी जान बचाने की बात की गयी होती ...वैसे ये मतला भी स्पष्ट है ..

चुप रहा 'वाहिद अगर महफ़िल में कल,
नज़्म उसकी गुनगुना ली जाएगी
मक्ता में मैं कल शब्द पर उलझ गया, कल कहने की क्या विशेष ज़रुरत थी ये समझ नहीं आया 

कोई को ११ की जगह २ मात्रा पर बाँधने की बात मैंने कहीं नहीं कही है , मेरी जानकारी में इसे किसी सूरत में २ नहीं किया जा सकता
आपने इसे प्रयोग के तौर पर लिया है और इसकी घोषणा भी कर दी है तो मैं आपके प्रयोग का खंडन नहीं करूंगा मगर मैं इस प्रयोग से सहमत नहीं हो पा रहा हूँ ... जब कोई प्रयोग इस घोषणा के साथ किया जाए कि //हाँ मुझे पता है ये नियम अनुसार सही नहीं है परन्तु मैंने जानबूझ कर ऐसा किया है// तो उसका खंडन उचित भी नहीं है ...... क्योकि समय खुद बहुत कुछ निर्धारित करता है ....

हाँ यदि आप यह कहेंगे की नियम अनुसार कोई को २ भी गिना जा सकता है तो मेरी जानकारी में अरूज़ में इस बात की कोई जगह नहीं है

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on January 18, 2014 at 7:42pm

भाई अरुन जी,

ग़ज़ल को पसंद करने और मुक्तकंठ से प्रशंसा करने हेतु आपका आभारी हूँ! किन्तु आपका ध्यान कहीं और था क्या? मैं 'आशीष जी' तो नहीं! ;-)

सादर,

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on January 18, 2014 at 7:40pm

आदरेया Dr.Prachi Singh जी,

आपकी सराहना मिली हृदय गद्गद है! बह्र के विषय में आपने जो कहा है उसका समाधान नीचे आदरणीय गिरिराज जी को दी गई प्रतिक्रिया में करने का प्रयास किया है! सादर,

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on January 18, 2014 at 7:40pm

आदरणीय गिरिराज जी!

सर्वप्रथम ग़ज़ल को अनुमोदित करने हेतु आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ! अब आते हैं आपकी जिज्ञासा पर! 'कोई को यहाँ 'कुइ' की तरह लिया है! वर्ष २०१२ के मध्य से जब मैंने धीरे-धीरे अरूज़ को जानना-समझना शुरूअ किया उसी दरमियान मुझे या ज्ञात हुआ था! 'कोई' एक ऐसा शब्द है जिसे सुविधानुसार '२२' '२१' '१२' या '११' में बाँधा जा सकता है! जहाँ तक मैंने अभी तक नोटिस किया है उस हिसाब से '११' का वज़्न (कई ऐसे शब्द हैं) कुछ विशेष बह्रों में ही फ़िट बैठता है! और चूँके मैंने यहाँ '२' का वज़्न लिया है तो आपको यह बता दूँ कि ऐसा सिर्फ़ इसलिए किया है कि बिना इस शब्द के मैं जो भाव शे'र में चाहता था वह नहीं आ पा रहा था और इसे लेने पर मात्रिक संयोजन बिगड़ रहा था तो इसका एकमात्र समाधान यही था कि इसे '२' के वज़्न लिया जाय! जब ऐसा किया जाता है तो कोई को बहुत गिराते हुए 'कुइ' पढ़ा जाता है और गति में पढ़ते हुए आगे बढ़ जाना होता है! यह जानकारी मुझे भाई वीनस केसरी जी से लभ्य हुई थी वह भी मेरी ही एक ग़ज़ल पर चर्चा के दौरान ( http://www.openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:2096... ) ! सामान्यतः ऐसे प्रयोग करने से बचने के यथासंभव प्रयास करने चाहिए और मैं भी इस तरह के प्रयोगों से बचता ही हूँ किन्तु यहाँ पर इसे आज़माया है इसका कारण भी ऊपर स्पष्ट कर दिया है! आशा है आपकी जिज्ञासा कुछ हद तक शांत हो गयी होगी! :-)) सादर एवं साभार,

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 16, 2014 at 10:42am

भाई आशीष जी हमेशा जी तरह एक और शानदार लाजवाब ग़ज़ल पेश की है आपने सभी के सभी अशआर धारदार बने हुए हैं बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेरों दिली दाद हाजिर है जनाब कबूल फरमाएं.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 15, 2014 at 11:24pm

कर के वादा तू मुकरता है तो सुन,
आज तेरी बात टाली जाएगी......बहुत सुन्दर 

पूरी ग़ज़ल बहुत सुन्दर हुई है आ० संदीप जी बहुत बहुत बधाई स्वीकारिये 

दास्ताँ कोई फिर बना ली जाएगी....इसकी बह्र एक बार फिर से देख कर आश्वस्त हो लें 

शुभकामनाएं 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
8 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
29 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। पंचकल त्रिकल के प्रयोग…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई के साथ-साथ धन्यवाद भी। कि, इस पटल पर, इस खुले आयोजन…"
1 hour ago
Chetan Prakash commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"वाकई  खूबसूरत शुद्ध हिन्दी गजल हुई, आदरणीय! "कर्म हम रणछोड  के अनुसार भी करते…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीया रक्षिता जी,  आपकी इस कविता में प्रदता शीर्षक की भावना निस्संदेह उभर कर आयी…"
3 hours ago
Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक शेर की विषय - वस्तु…"
5 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"धन्यवाद भाई लक्ष्मण धामी जी "
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"अच्छी रचना हुई है ब्रजेश भाई। बधाई। अन्य सभी की तरह मुझे भी “आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा”…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"बेहतरीन अशआर हुए हैं आदरणीय रवि जी। सभी एक से बढ़कर एक।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service