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ममता का चित बड़ा चंचल चपल तब 

तन मे सचल मन बड़ा ही प्रचल है 

रमता ये जोगी छोटा नाटा ये कपट कब   

तन में उदित मन बड़ा ही स्वचल है

समता का भाव जागा मन में भी मेरे अब   

तन में न हलचल मन निशचल है  

तमता नहीं है भाव में रहे निचल रब  

तल में अतल में वितल में अचल है  

मौलिक एवं अप्रकाशित 

आशीष (सागर सुमन)

Views: 529

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2014 at 11:03pm

गेयता और शब्द विन्यास पर कार्य करें आदरणीय.

मुझे आपकी यह कोशिश एक ऐसी कोशिश लगी जो सीखने के क्रम में विद्यार्थियों द्वारा अमूमन की जाती है. कथ्य के संप्रेषण में कुछ और ध्यान देने के आवश्यकता है.

शुभेच्छाएँ

Comment by ram shiromani pathak on January 14, 2014 at 9:32pm

बहुत सुन्दर घनाक्षरी .हार्दिक बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on January 10, 2014 at 9:29am

अति-सुन्दर , मुग्ध करती घनाक्षरी के लिए बधाइयाँ...............

Comment by Ashish Srivastava on January 9, 2014 at 9:55pm

savitamishra: hrday tal se aabhari hun 

Comment by Ashish Srivastava on January 9, 2014 at 9:55pm

Shyam Narain Verma ji , hardik aabhaar 

Comment by Ashish Srivastava on January 9, 2014 at 9:55pm

Meena Pathak JI aabhaar 

Comment by Meena Pathak on January 9, 2014 at 12:31pm

बहुत सुन्दर घनाक्षरी .. सादर बधाई 

Comment by Shyam Narain Verma on January 9, 2014 at 11:15am
बढ़िया रचना पर हार्दिक बधाइयाँ........
Comment by savitamishra on January 9, 2014 at 11:03am

 सुंदर

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