For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

१.      “ मैं ”

 

मैं-मैं तू करके हुआ, भौतिक सुख में लीन

अहम् भाव और देह की, रहा बजाता बीन

रहा बजाता बीन , नहीं  ‘मैं’ को पहचाना  

परम तत्व को  भूल ,जोड़ता रहा खजाना    

क्या  दिखलाकर दाँत,  करेगा केवल हैं हैं ?

जब पूछें यमराज, कहाँ बतला  तेरा  मैं ||

 

२.      “ तुम “

 

तुम-मैं मैं-तुम एक है , परम ब्रम्ह का अंश  

जाति- धर्म  इसका नहीं , और न कोई वंश

और न कोई वंश ,यही तो अजर - अमर है

अविनाशी  है  रूह , और  काया  नश्वर है

कर इसका अहसास,ह्रदय में रुमझुम रुमझुम

परम ब्रम्ह का अंश , एक है तुम-मैं मैं-तुम ||

 

३.      “ हम “

 

‘हम’ नन्हा-सा शब्द है,अणु जैसा ही जान

शक्ति कल्पनातीत है,‘हम’ से कौन महान

‘हम’ से कौन महान, एकता का परिचायक

‘हम’ देता सुख शांति, रहा हरदम ‘हम’ नायक  

जीना सब के साथ , नहीं  रहना तन्हा-सा

अणु जैसा ही जान,शब्द है ‘हम’ नन्हा-सा ||

 

 

अरूण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

 

मौलिक व अप्रकाशित

 

Views: 741

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by annapurna bajpai on January 16, 2014 at 6:05pm

आ0 अरुण कुमार जी संदेश युक्त  कुण्डलिया के लिए आपको तहे दिल से बधाई । 

Comment by ram shiromani pathak on January 14, 2014 at 9:21pm

बहुत सुन्दर कुंडलियां आदरणीय अरुण निगम जी। । हार्दिक बधाई आपको 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2014 at 4:13pm

आदरणीय अरुणजी, आपकी यह छंद-रचना कई मायनों में सार्थक है. इनके माध्यम से संज्ञा-इंगितों को परिभाषित करने का सुन्दर प्रयास हुआ है. वहीं, भावदशा को गहनता से साझा किया गया है.
आपको बार-बार बधाइयाँ और असीम शुभकामनाएँ
सादर

Comment by Maheshwari Kaneri on January 11, 2014 at 1:30pm

अरूण कुमार जी बहुत बढिया..

Comment by रमेश कुमार चौहान on January 10, 2014 at 10:27pm
मै, तुम और हम तीनों को आपने सुंदर परिभाषित किया है, भैय्याजी आपने सच मानिये अंर्तमन भाव विभोर हो गया । बधाई बधाई आपको
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 10, 2014 at 12:40pm

उच्च भाव लिए तीनों छंद कुण्डलिया की हार्दिक बधाई अरुण भाई॥

Comment by कल्पना रामानी on January 9, 2014 at 10:45pm

तीनों  छंद सार्थक संदेश देते हुए बहुत सुंदर हैं। हार्दिक बधाई आपको आदरणीय अरुण निगम जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 9, 2014 at 12:53pm

अय हय हय आदरणीय गुरुदेव श्री जय हो आपकी मुग्ध हूँ मैं, तुम और हम की परिभाषा से. तीनो ही कुण्डलिया छंद हृदयस्पर्शी हैं सुन्दर सन्देश प्रद हैं हृदयतल से बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 8, 2014 at 9:23pm

आदरणीय अरुण भाई , मै, तुम , हम पर  आपकी दार्शनिक , आध्यात्मिक कुंडलिया बहुत बढिया लगी , आपको बहुत बधाइयाँ ॥

Comment by Abhinav Arun on January 8, 2014 at 5:25pm
क्या कहने आदरणीय श्री अरुण जी पुरे फार्म में हैं ....बहुत सुन्दर सशक्त समीचीन रचना ...विविध आयामों से परिपूर्ण विचारपरक रचना हार्दिक बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service