For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - सच को अपनाने का जब ऐलान किया !

ग़ज़ल –
फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फा
२२ २२ २२ २२ २२ २

सच को अपनाने का जब ऐलान किया ,
सबने मुझ पर बाणों का संधान किया |

जागो रण में नींदें भारी पड़ती हैं ,
अभिमन्यू ने प्राणों का बलिदान किया |

आंसू की दो बूँदें टपकी पन्नो पर ,
मैंने अपने किस्से का उन्वान किया |

सोने की अपनी अपनी लंकाएं गढ़ ,
हमने ख़ुद में रावण को मेहमान किया |

देश निकाला देकर सारे पेड़ों को ,
हमने अपने शहरों को वीरान किया |

भूख ग़रीबी महंगाई दो दिन के हैं ,
कुबड़े काने राजा ने फरमान किया |

दूषित होकर भी गंगा गंगा ही है ,
बेशक हमने अपना ही नुक्सान किया |

वृद्धाश्रम में नाम लिखाकर भूल गए ,
हमने अपनों का ऐसा सम्मान किया |

बाहर बाहर उन्नतशील लबादे हैं
भीतर भीतर मूल्यों को शमशान किया |

सच्चाई थी धोती लाठी ऐनक में ,
बापू ने उस सच्चाई का ध्यान किया |

* सर्वथा मौलिक और अप्रकाशित .

©& ® 06012014- अभिनव अरुण

Views: 826

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on January 8, 2014 at 5:28pm
मोहतरम जनाब नादिर साहब दिली शुक्रिया आपका . हौसलाफजाई से बेहतर की प्रेरणा मिलेगी !
Comment by Abhinav Arun on January 8, 2014 at 5:27pm
बहुत शुक्रिया आदरणीय श्री सज्जन जी ..आभार !!
Comment by नादिर ख़ान on January 8, 2014 at 4:26pm

सच को अपनाने का जब ऐलान किया ,
सबने मुझ पर बाणों का संधान किया |

जागो रण में नींदें भारी पड़ती हैं ,
अभिमन्यू ने प्राणों का बलिदान किया |

आदरणीय अभिनव जी उम्दा गज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 8, 2014 at 2:30pm
अच्छे अश’आर हुए हैं अभिनव जी, दाद कुबूलें
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 8, 2014 at 2:29pm

अच्छे अश’आर हुए हैं अभिनव जी, दाद कुबूलें

Comment by Abhinav Arun on January 7, 2014 at 7:12pm
आदरणीय महिमा जी बहुत शुक्रिया आपका ..आपको अश'आर पसंद आये ग़ज़ल कहना सार्थक हुआ ...नव वर्ष की मंगलकामनाएं आपको !!
Comment by Abhinav Arun on January 7, 2014 at 7:11pm
अभिभूत हूँ आदरणीय श्री विजय जी आपका आशीर्वाद प्राप्त हुआ , आभार और नमन आपको !
Comment by Abhinav Arun on January 7, 2014 at 7:10pm
आदरणीय श्री गिरिराज जी आभारी हूँ आपका स्नेह मिला !
Comment by MAHIMA SHREE on January 7, 2014 at 7:07pm

आंसू की दो बूँदें टपकी पन्नो पर ,
मैंने अपने किस्से का उन्वान किया |

सोने की अपनी अपनी लंकाएं गढ़ ,
हमने ख़ुद में रावण को मेहमान किया

 

दूषित होकर भी गंगा गंगा ही है ,
बेशक हमने अपना ही नुक्सान किया

 

बाहर बाहर उन्नतशील लबादे हैं
भीतर भीतर मूल्यों को शमशान किया |..... वाह वाह  .. आदरणीय अभिनव जी  अनेको बधाईयाँ.... आपके उच्चे दर्जे के  ख्याल और उम्दा लेखन दोनों मिलकर हमेशा कमाल के गज़ल कह जाते हैं ... सादर

Comment by vijay nikore on January 7, 2014 at 7:07pm

अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service