For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मिसरा-तरह //आखिर तुमने अपना ही नुकसान किया // पर आधारित एक तरही ग़ज़ल

22- 22- 22- 22- 22- 2

सच्चाई को जब अपना ईमान किया

सारी दुनिया को उसने हैरान किया

 

मुल्क़परस्ती का जज़्बा अब आम नहीं

किसने अपना सब यूँ ही क़ुर्बान किया

 

चुन-चुन के ग़ज़लों को बाँधा तुमने यूँ

बिखरे औराक़ सहेजे, दीवान किया

 

छोटी- छोटी बातों में खुशियाँ ढूँढी

अपने छोटे से घर को ऐवान किया

 

मायूस हुआ तेरी तीखी बातों से

आईना दिखलाया ये एहसान किया

 

उम्मीदों के फूल खिले थे सहरा में

आग लगा क्यूँ उसको फिर वीरान किया

 

हाथ न आया लोगों के कोई इल्ज़ाम

बस मेरी मर्गे वफा का एलान किया

 

छोटे से इक झोंके को जाने कैसे

काबू करके उसने यूँ तूफान किया

 

रात गुज़ारा तन्हा मैंने आँखों में

तेरी यादों को अपना मेहमान किया

 

औराक़ =पन्ने, दीवान = किसी शायर के ग़ज़लों की किताब, ऐवान = महल

मर्गे वफा = वफा की मौत

 

-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 806

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 7, 2014 at 7:04am

आदरणीय शिज्जू भाई सदर अभिवादन 

आपकी यह ग़ज़ल मुझे आपकी तमाम अन्य ग़ज़लों से जुदा दिखी .

उम्मीदों के फूल खिले थे सहरा में

आग लगा क्यूँ उसको फिर वीरान किया   

यह शेर बहुत भ गया .

इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई .

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 6, 2014 at 10:49pm

सुंदर तरही गज़ल की बधाई , शिज्जु भाई॥ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 6, 2014 at 8:34pm

आदरणीय डॉ आशुतोष सर रचना को मान देने के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 6, 2014 at 8:33pm

भाई अमित जी रचना की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 6, 2014 at 8:32pm

आदरणीया कुन्ती जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 6, 2014 at 8:32pm

आदरणीय गिरिराज सर हमेशा की तरह आपकी उत्साही प्रतिक्रिया के लिये तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 6, 2014 at 8:31pm

आदरणीय राज बुन्देली सर रचना को मान देने के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 6, 2014 at 8:30pm

आदरणीया सरिता जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 6, 2014 at 6:05pm

आदरणीय शिज्जू जी ..आपकी यह ग़ज़ल मुझे आपकी तमाम अन्य ग़ज़लों से जुदा दिखी ..बहर भी नए पन में ..चुनिन्दा शब्द अपने यथोचित स्थान पर ..आपके इस प्रयोग पर मेरी तरफ से हार्दिक बधाई 

हाथ न आया लोगों के कोई इल्ज़ाम

बस मेरी मर्गे वफा का एलान किया

छोटी- छोटी बातों में खुशियाँ ढूँढी

अपने छोटे से घर को ऐवान किया....सबसे दिलकश बात जो अब ढूंढें नहीं मिलती .....

सच्चाई को जब अपना ईमान किया

सारी दुनिया को उसने हैरान किया...

 

मुल्क़परस्ती का जज़्बा अब आम नहीं

किसने अपना सब यूँ ही क़ुर्बान किया.....ये दोनों शेर भी लाजबाब हैं ..दोनों कार्य अत्यत्न दुष्कर भी ..बहुत बहुत बधाई ..

Comment by अमित वागर्थ on January 6, 2014 at 6:02pm

उम्मीदों के फूल खिले थे सहरा में

आग लगा क्यूँ उसको फिर वीरान किया    वाह वाह क्या बात है

इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई शिज्जू भाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service