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ग़ज़ल- पर सुगम होगा सफ़र, लगता है // --सौरभ

दिन उगे का तो पहर लगता है
यों अभी थोड़ी कसर, लगता है..

साँस लेना भी दूभर लगता है
क्या ये मौसम का असर लगता है

क्या हुआ साथ चलें या न चलें
पर सुगम होगा सफ़र, लगता है

घोर आपत्तियों के मौसम में  
मौन तक आज मुखर लगता है

जोश अंदाज़ रवां दौर लिये  
मकबरा शांत इधर लगता है  

लोग दीवार उठायेंगे ही    
छत बना यार अगर लगता है

जब सभी पास रहें हँस-मिल कर
घर तभी प्यार का घर लगता है

बह रही शांत नदी के मन में  
एक उल्टी है लहर लगता है

सांत्वनाएँ जो मिलीं कुछ यों मिलीं
अब निवेदन से भी डर लगता है
*************

-सौरभ

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Saarthi Baidyanath on January 6, 2014 at 10:39pm

आदरणीय बहुत ही प्रभावशील ग़ज़ल हुई है ! आपके अशआर कहने का तरीका ..बहुत अच्छा लगा ! इस बढ़िया ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल करें ..

जब सभी पास रहें हँस-मिल कर 
घर तभी प्यार का घर लगता है .....लाजवाब ..बस लाजवाब 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 6, 2014 at 10:15pm

आदरणीय सौरभ भाई ,

नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ खूबसूरत शेरों की ढेरों बधाई।

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 6, 2014 at 7:32pm

आदरणीय सौरभ सर लाजवाब अशआर से सुसज्जित ग़ज़ल के लिये आपको बहुत बहुत बधाई आपकी रचनाओं की हमेशा प्रतीक्षा रहती है।

Comment by coontee mukerji on January 6, 2014 at 5:28pm

जब सभी पास रहें हँस-मिल कर
घर तभी प्यार का घर लगता है .....बहुत सही और खुशनुमा महौल बना रहता है....अच्छी गज़ल के लिये अपको हार्दिक बधाई आदरणीय सौरभ जी, सादर.

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2014 at 5:09pm

आदरणीय,,,.नमन,,,,,सभी अशआर एक से बढ़कर एक हुये,,सच तो यह है कि एक का उल्लेख करूं तो दूसरा शेर ख़फ़ा हो जायेगा,,, गज़ब के भाव,,,,और संदेश देती हुई इस गज़ल के लिये बहुत बहुत बधाई,,,,,,,,आपको,,,,,,

Comment by Abhinav Arun on January 6, 2014 at 3:59pm

हर शेर लाजवाब अग्रज श्री ..भाव भरे ... मधुर विमर्श को प्रेरित करती ग़ज़ल ..कामयाब ..ये अश्'आर ख़ास तौर पे बार बार पढ़ आनंदित हूँ---

 

जब सभी पास रहें हँस-मिल कर
घर तभी प्यार का घर लगता है

 

बह रही शांत नदी के मन में 
एक उल्टी है लहर लगता है
     ..हार्दिक नमन ! नूतन वर्ष आपके स्नेह - आशीष की छाँव मे मेरे शब्दों को और सामर्थ्य दे यही कामना है !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2014 at 1:39pm

आदरणीया सरिताजी, आपकी संवेदनशीलता ने इस ग़ज़ल के अश’आर को मायने दिये हैं. एक कोशिश को पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2014 at 1:13pm

आदरणीय गिरिराजभाई, आपने ग़ज़ल को अनुमोदित कर इसे बहुत ही सम्मान दिया है. हार्दिक आभार.. .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2014 at 1:12pm

आदरणीया वन्दनाजी, इस ग़ज़ल को सराहने के लिए हार्दिक धन्यवाद.

Comment by Sarita Bhatia on January 6, 2014 at 9:46am

आदरणीय सौरभ sir लाज़वाब गजल 

जब सभी पास रहें हँस-मिल कर 
घर तभी प्यार का घर लगता है 

बह रही शांत नदी के मन में  
एक उल्टी है लहर लगता है 

सांत्वनाएँ जो मिलीं कुछ यों मिलीं 
अब निवेदन से भी डर लगता है 

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