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ग़ज़ल- सारथी || जुल्फ़ के पेंचों में ||

जुल्फ़ के पेंचों में कमसिन शोख़ियों में

मुब्तला हूँ  हुस्न की रानाइयों  में/१ 

आसमां के चाँद की अब क्या जरूरत

चाँद रहता है नजर की खिड़कियों में/२ 

दिल पे भरी पड़ती है दोनों ही सूरत

हो कहीं वो दूर या नजदीकियों में/३ 

सोचता हूँ अब उसे माँ से मिला दूँ

छुप के बैठी है जो कब से चिठ्ठियों में/४ 

वो अदाएं दिलवराना क़ातिलाना

अब कहाँ वो रंग यारों तितलियों में/५ 

है सुकूं कितना,बताउं कैसे तुमको

यार इज्जत की, कमाई रोटियों में/६ 

चार मिसरों से कहो कांधे पे अपने

ले चलें हमको सुखन की वादियों में/७ 

..................................................

अरकान : २१२२ २१२२ २१२२ 

सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Saarthi Baidyanath on January 7, 2014 at 8:31pm

सम्माननीय  योगराज प्रभाकर जी ..प्रथमतया सादर प्रणाम ...जेह-किस्मत , जो आप गरीबखाने तक आये ! आपकी गरिमामयी उपस्थिति का अभिवादन व अभिनन्दन करता हूँ ! आपको ग़ज़ल पसंद आई ..नाचीज की मेहनत सफल हो गई ! आशीर्वाद बनाये रखियेगा मान्यवर ...आप सब से ही सीख रहा हूँ ...सिखलाते रहिएगा ...! विनीत नमन पुनश्च  :)

Comment by Saarthi Baidyanath on January 7, 2014 at 8:27pm

आदरणीय  शिज्जु शकूर साहिब ...नजरे-इनायत है आपकी ! बहुत बहुत शुक्रिया इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए ! सादर नमन कर रहा हूँ ! :)

Comment by vijay nikore on January 7, 2014 at 7:05pm

अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by Priyanka singh on January 7, 2014 at 4:57pm

वाह वाह लाजवाब, खूबसूरत ग़ज़ल ...बहुत उम्दा .....बधाई आपको

Comment by बृजेश नीरज on January 7, 2014 at 1:13pm

बहुत ही सुन्दर! लाजवाब! आपको हार्दिक बधाई!


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 7, 2014 at 11:42am

नौजवानी से बुढ़ापे तक का रिश्ता
क्या सलीका था, पुराने दर्जियों में/

वाह वाह भाई सारथी जी, यह शेअर बिलकुल अलग से ही चमक रहा है. ग़ज़ल बढ़िया हुई है, बधाई स्वीकारें।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 7, 2014 at 8:45am

वाह भाई वैद्यनाथ जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई है हर शेर को खूबसूरती से आपने पेश किया है बधाई आपको

Comment by Saarthi Baidyanath on January 6, 2014 at 10:31pm

आदरणीय अरुन साहब ...हार्दिक आभार ज्ञापित कर रहा हूँ ..! सादर नमन आपको ..जो कुछ सीख रहा हूँ ..इस मंच का बहुत बड़ा योगदान है ..आप सभी गुणीजनों का आशीष भी है ..! विनीत नमन सहित :)

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 6, 2014 at 11:51am

सारथी भाई वाह दिल ख़ुश कर दिया आपने इस बेहतरीन ग़ज़ल को पेशकर सभी अशआर एक से बढ़कर एक बने हुए हैं भाई. जबरदस्त ग़ज़ल के लिए ढेरों दिली दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by Saarthi Baidyanath on January 5, 2014 at 11:07pm

 annapurna bajpai : महाशया , बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने अनुज को स्नेहाशीष दिया ..आभारी रहूँगा ! कोटिशः नमन सहित :)

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