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आकर्षण के नियम (अतुकांत) -गिरिराज भंडारी

आकर्षण – विकर्षण 

चुम्बक मे ही नहीं होता  

भाव भी खींचते हैं , दूर कर देते हैं

भावों को ।

बस , नियम उलटा है

चुम्बक से ।

एक ही भावों होता है खिचाव  ,

भाव अलग हों तो दुराव ।

और फिर ,

बन जाता है / बन जायेगा

एक समूह,

समान भाव वालों का , और तब

पोषित ,पुष्पित होगा

वही भाव ,और अधिक ,

गहन होगा , विस्तारित होगा

बहेगा एक से दूसरे में ,

आच्छादित हो जायेगा

आपके आस पास का ,सब कुछ ,

उसी भाव से ।

फिर , जियेंगे ,मरेंगे भी

उसी भाव के लिये ।

सारा जीवन क्रम घूमने लगेगा

इर्द गिर्द ,उसी भाव के ।

आप माने न माने

यही सच है ,

यही हो रहा है , सदा से

यही होगा , आगे भी 

ऐसे में भावों का अशुभ होना कितना सही है ?

चलो सोचें ॥

*************

मौलिक एवँ अप्रकाशित  ( संशोधित )

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 6, 2014 at 5:03pm

आदरणीय सौरभ भाई , रचना को मान देने के लिये आपका हार्दिक आभार ॥ सीखने के क्रम मे आपकी सलाह और सहायता की हमेशा ज़रूरत रहेगी , ऐसे ही स्नेह बनाये रखें ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2014 at 3:38pm

वैचारिक कविता के लिए बहुत-बहुत बधाई आदरणीय.

आदरणीया प्राचीजी के कहे से मैं पूरी तरह संतूष्ट नहीं हो पाया. क्योंकि वैचारिक संप्रेषणों के लिए गेयता बन्धन है. विचारों को सान्द्र होने दें. वैसे यह मेरी व्यक्तिगत सोच है.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 4, 2014 at 9:47pm

आदरणीय विन्ध्येश्वरी भाई , रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 4, 2014 at 7:45pm
आकर्षण तो सार्वत्रिक नियम है। किन्तु यह निर्भर होता है भाव पर/ नजरिया पर।
बहुत ही सही आपने आकर्षण के नियम का उद्घाटन प्रकटन किया है। आदरणीय गिरिराज जी आपको भूरिश: बधाई।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 2, 2014 at 11:33am
आदरणीय अरुण अनंत भाई , रचना की सराहना के लिये आपका बहुत आभार ॥

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 2, 2014 at 11:30am
आदरणीय लक्ष्मण भाई , रचना स्वीकार करने के लिये आपका आभारी हूँ ॥
Comment by अरुन 'अनन्त' on January 2, 2014 at 11:29am

आदरणीय गिरिराज सर रचना का भाव बहुत ही उम्दा है बहुत पसंद आया इस हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 2, 2014 at 11:29am
आदरणीय जितेन्द्र भाई , रचना की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 2, 2014 at 11:27am
आदरणीया प्राची जी , रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आपकी सलाह के लिये आपका बहुत शुक्रिया ॥
टंकण की ग़लती मे सुधार कर लिया हूँ , और गेयता भी सुधारने का प्रयास किया हूँ ॥ कहाँ तक सफल हुआ कह नही सकता ॥
मै थोड़ा मठ्ठर दिमाग हूँ , आपकी सक्रिय सहायता की ज़रूरत है , गणित ले के पढ़ा होने के कारण बिना उदाहरण समझने मे मुझे मुश्किल होती है ॥ सादर ॥
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 2, 2014 at 7:20am

आदरणीय भाई गिरिराज जी  बहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति है इस रचना के लिये हार्दिक  बधाई स्वीकार करें. साथ ही नववर्ष की शुभकामनाएं भी .

कृपया ध्यान दे...

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