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हां ठीक था, अर्जुन !

तुम अपने युयुत्सु परिजनों पर

शस्त्र न उठाते i

उन्हें अपने गांडीव की प्रत्यंचा

की सीध में न लाते i

तुम्हारा यह निर्णय ठीक होता या न होता

हां सभी मर जाते तो शवो पर कौन रोता ? 

किन्तु यह क्या---

तुम्हारे शरीरांग कांपे क्यों ?

वदन सूखा क्यों,  दशन चांपे क्यों ?

वेपथु क्यों हुआ, क्यों हुआ लोमहर्षण 

अभी तो शंख घोष था, नही था अस्त्र वर्षण 

तब भी तुम्हारे हाथ से गांडीव खिसका

तुम्हारी र्त्वेचा जली तो दोष  किसका  ?

तुम 'अवस्थानुम न शक्नोमि ' हो गए

तुम्हारा सिर चकराया, शून्य में खो गए

इतने सारे संचारी तुम्हारी पराजय लिखने लगे 

तुम्हे अपने ही भय से अमंगल दिखने लगे     

और भीष्म, द्रोण करते थे गर्व तुम पर 

तुम थे अपने युग के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर 

नहीं होता विश्वास 

जो हो कृष्ण का सखा खास 

वह इतना दुर्बल, इतना शक्तिहीन 

तुममे न आत्मबल न आशा नवीन

तो फिर यह युद्ध जीता किसने?

क्या तुमने नहीं, कृष्ण ने ?

 

 

 

मौलिक/अप्रकाशित

 

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Comment

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Comment by ram shiromani pathak on December 6, 2013 at 12:31am

सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय गोपाल जी … हार्दिक बधाई आपको
आदरणीय कुछ प्रश्न हैं। .......

हां ठीक था, अर्जुन ///////इसका क्या अर्थ निकालूँ 

तुम अपने युयुत्सु परिजनों पर////////////ये कौन थे कृपा कर प्रकाश डालें 

निवेदन है कृपा कर मार्गदर्शन करें ///////सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 5, 2013 at 9:04pm

मित्र /अनुज

आपके प्रोत्साहन का आभार i

यही तो प्रेरणा देते हैं  i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 5, 2013 at 8:42pm

आदरणीय बड़े भाई , सुन्दर रचना , प्रश्न बहुत सुन्दर ढ़ंग से आपने उठाया है !!!! वैसे तो भगवान श्री के कहा भी है कि मारने वाला भी मै ही हूँ , और सबके अन्दर मरने वाला भी मै ही हूँ !!!  अनुपम रचना के लिये आपको बधाई !!!!

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