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कुछ दोहे ....................डॉ० प्राची

भाव भँवर को पार कर , अर्पण कर सर्वस्व 

जड़ता जो चेतन करे , उसका चिर वर्चस्व // 1 //

संवेदन से हीन जो , भाव भक्ति से मुक्त 

प्रस्तर सम वह जड़ हृदय , अहंकार से युक्त // 2 //

मूढ़ व्यक्ति के मौन में , परिलक्षित अज्ञान 

संत जनों के मौन का , मूल तत्व निज ज्ञान // 3 //

सजग बुद्धि को दृष्ट है , चित्त वृत्ति का नृत्य 

ज्ञान अगन तप वृत्ति का , सधता है हर कृत्य // 4 //

नहिं अनंत में वृद्धि है , नहिं अनंत का ह्रास 

जो सअंत निज जानता , पाता वह संत्रास // 5 //

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 5, 2013 at 9:07pm

आदरणीया प्राची जी , बहुत ज्ञान वर्धक दोहों की रचना की है , विषय भी गूढ़ है , लाजवाब !!!!! आपको हार्दिक बधाइयाँ !!!

मूढ़ व्यक्ति के मौन में , परिलक्षित अज्ञान 

संत जनों के मौन का , मूल तत्व निज ज्ञान //  सबसे अच्छा लगा , पुनः बधाई !!!!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 5, 2013 at 7:23pm

आदरणीया

मैंने जब दोहे लिखे सौरभ जी ने मेरी लम्बी क्लास ली i उनके  हिसाब से  विषम चरण का अंत रगण  या नगण से होना चाहिए i फिर मैंने

 अपने दोहे शुद्ध किये i  तब सौरभ जी की स्वीकृति  मिली  i

दोहों के भाव  में आपका अनुभव और  ज्ञान मुखरित है i  शुभ कामनाये i

Comment by Sarita Bhatia on December 5, 2013 at 6:12pm

आदरणीया प्राची जी बहुत सुन्दर दोहावली के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by राजेश 'मृदु' on December 5, 2013 at 5:51pm

बहुत ही बढि़या दोहे रचे हैं आने आदरेया, हार्दिक बधाई आपको, सादर

Comment by Meena Pathak on December 5, 2013 at 4:20pm

बहुत सुन्दर दोहे आदरणीया प्राची जी .. बधाई स्वीकारें 

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