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!!! पर दीवाना धीर साहस डॉंटता !!!

!!! पर दीवाना धीर साहस  डॉंटता !!!--संशोधित
बह्र- 2122 2122 212

ताड़ना के शब्द निश-दिन बॉंचता।
प्यार है आसां मगर क्यों?  छॉंजता।।

हाथ से पतवार मांझी छोड़ कर,
जाल कल्मष का बिछाता हॉंपता।।

मीन का व्यापार करता - बाद में,
लाख जन्मों तक भटकता कॉंपता।

जाति जालिम जान तक भी छीनती,
धर्म की छतरी शिखा पर तानता।

सिर चढ़ाते हैं बड़े ही प्यार से,
बागबां ही बाग को फिर  छॉंटता।

सोचता हूं आज सत्यम त्याग  दॅू,
पर दीवाना धीर साहस  डॉंटता।

के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on December 18, 2013 at 6:18pm

आ0 अन्नपूर्णाजी, श्याम नारायणजी, आशुताषजी, रामशिरोमणिजी, गोपालजी, अरूनअनन्तजी, गिरिराजजी, विजयजी,अनुरागजी, गनेशजी सरजी, शिज्जूजी एवं सौरभ सरजी   आप सभी  लोगों को उक्त गजल पर अपने विचार रखने हेतु आपका हार्दिक आभार,।  वास्तव में पूर्व मे कही गयी गजल विशेष बात को ध्यान में रखकर ही पोस्ट किया था, जो मेरे विचार से सही था। किन्तु आप लोगों के प्रतिकिया के सम्मान में अंब मैंने उसे सशोधित कर दिया है।  उम्मीद है अब आप लोगों को कथ्य स्पष्ट लगेगा। एक बार पुन: आप लोगो का  आभार । सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 22, 2013 at 2:00am

भाई केवल जी, कई टिप्पणियाँ बहुत कुछ कह रही हैं. शुभचिंतकों के कहे पर कृपया ध्यान दें. आपका प्रयास हम सभी की वैसे हिम्मत बढ़ाता हुआ है.

भाई अनुराग सैनीजी, आपके साथ केवल भाई ने जाने-अनजाने ऐसा क्या गलत कर दिया है कि आप उनके खिलाफ़ इतनी खुन्नस वो भी इस ज़हर बुझे लहज़े में इतनी मुलामियत से निकाल रहे हैं ? जैसी वाहवाही आप दे रहे हैं उसके लिए अपने केवल भाई को किसी दुश्मन की आवश्यकता ही नहीं रह जाती... :)))

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 21, 2013 at 10:08pm

आदरणीय केवल जी आपकी कई रचनायें पढ़ीं चाहे सनातनी छंद हो या हिन्दी के तत्सम शब्द से सुसज्जित ग़ज़ल, उनसे आपकी इस रचना की तुलना करूँ तो निराशा हुई, जियादातर जगह कहन स्पष्ट नही हैं यूँ लगा कि शब्दों को आपने सिर्फ बह्र में रखने की कोशिश की है


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 21, 2013 at 10:00pm

//कुछ लोग अपने ज्ञान को ही महान समझते है //

डॉ अनुराग सैनी जी, जरा आप संयत हों । शायद आप अभी तक इस मंच को समझ ही नहीं सके हैं । यहाँ गलतियों को गलत कहने के लिए सदस्यों को प्रेरित किया जाता है |

मैं चाहे ये कहूं, मैं चाहे वो कहूं मेरी मर्जी !!... ये वाला फंडा यहाँ लागू नहीं होता । घर की खेती नहीं है कि जो चाहे लिख कर उसे ग़ज़ल का नाम लिख दिया जाय और तुर्रा यह कि उसपर उल जलूल तर्क दिया जाय कि, "मैं इंजॉय करने के लिए लिखता हूँ" | भाई साहब साहित्य को मजाक न समझें और यदि समझ रहे हों तो आप समझें । किन्तु वैसी परिस्थितियों में फिर इस मंच को में बख्श दें | 

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on November 21, 2013 at 9:46pm

कुछ लोग अपने ज्ञान को ही महान समझते है , सादर 

हर एक भाव पूरा स्पष्ट है और उम्दा है कमियाँ जो निकालते है निकाले 

हमारी तरफ से तो १०० फीसदी नंबर और बधाई आपको 

Comment by विजय मिश्र on November 21, 2013 at 6:38pm
बहुत सुंदर भावों से युक्त और मन की बात भी , हृदय से बधाई केवलजी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 21, 2013 at 4:38pm

आदरणीय सत्यम भाई , बहुर सुन्दर गज़ल कही है ,!!!!! आपको हार्दिक बधाई !!!!!

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 21, 2013 at 11:52am

आदरणीय केवल भाई जी सच कहूँगा मजा नहीं आया प्रयास बहुत ही अच्छा है शब्द चुनाव बहुत ही उम्दा है किन्तु स्पष्ट नहीं हो पा रहा है.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 20, 2013 at 9:08pm

आपकी प्रगति अच्छी हैi  मुझे प्रसन्नता है आप दिन ब दिन निखर रहे है i

आप से और भी उम्मीद है i वीर तुम बढ़े चलो --- सामने पहाड़ हो --- सिंह की दहाड़ हो ----

Comment by ram shiromani pathak on November 20, 2013 at 8:39pm

आदरणीय केवल भाई जी सुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई आपको। ……


दूर तक दौरे चमन जलता रहा।
डालता पानी पियासा हॉंपता।।
कत्ल करके दोस्तों की शान में,
नज्म कविता रोज पढ़ता कॉंपता।।।।।। इन पक्तियों में मुझे कथ्य स्पस्ट नहीं लगा भाई .... सादर

कृपया ध्यान दे...

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