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सत्य की अवहेलना है : अरुन शर्मा 'अनन्त'

न्याय के घर झूठ भारी
सत्य की अवहेलना है,

अब पतन निश्चित वतन का,
दण्ड सबको झेलना है,

पाप का पापड़ कहाँ तक,
मौन रहकर बेलना है.

दांव पे साँसे लगी हैं,
ये जुआ भी खेलना है,

मृत्यु की खाई में बाकी,
शेष जीवन ठेलना है....

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by अरुन 'अनन्त' on November 18, 2013 at 11:48am

हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज सर

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 18, 2013 at 11:48am

हार्दिक आभार आदरणीय गोपाल नारायन सर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 18, 2013 at 9:30am

प्रिय अरूण जी, अद्भुत.........अतिसुन्दर...........जितनी सराहना की जाए, कम है...............

Comment by वेदिका on November 17, 2013 at 11:55pm

वैचारिक सारगर्भित रचना हुई है|  हार्दिक बधाई!!

Comment by ram shiromani pathak on November 17, 2013 at 11:54pm

सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय अरुण भाई जी,बहुत बधाई आपको ... सादर

Comment by Sarita Bhatia on November 17, 2013 at 11:17pm

आदरणीय डॉ नारायण जी का कहना सही है 

किसी भी आदि का अंत सब कुछ का अंत नहीं है 

आशावान बनिए 

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on November 17, 2013 at 11:08pm

बहुत सुन्दर आदरणीय, जीवन के एक ध्रुव सत्य दु:ख और मृत्यु की याद दिलाने के लिए। साधुवाद इन काव्यात्मक पंक्तियों हेतु।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 17, 2013 at 8:26pm

आदरणीय अरुण अनंत भाई , सारगर्भित , सुन्दर रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 17, 2013 at 7:30pm

अनंत जी 

इस संसार में रहना है तो मौन रहकर ही पापड़ बेलना है  पर अभी इस उम्र में निराशाi   मृत्यु एक सरिता है  जिसमे श्रम  से \कातर जीव नहाकर फिर नूतन  धारण करता  है काया रूपी वस्त्र बहाकर -------- आप की लेखनी मधुर है i स्नेह i

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