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विचारो का बीज.............

हाथ में कुछ बीज
यूँ ही ले के कागजो
पे बोने आ गयी हूँ
विचारो के बीज
सबको कहाँ मिलते हैं
मुझे भी बस एक ही मिला
एक बाग़ लगाना है
इसलिए मुट्ठी
कस कर बंद हैं
इस बीज को वृक्ष
वृक्ष से फिर बीज
इसी तरह
तो लगेगा बाग़
माली ने बताया था
माली वो जो
सबके भीतर हैं
मुझे मिला था
एक रोज जब
उसी ने दिया था
 ये एक बीज
''विचारो का बीज ''

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by बृजेश नीरज on October 17, 2013 at 7:13pm

बहुत सुन्दर कविता! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by savita agarwal on October 17, 2013 at 4:55pm

आदरणीय गिरिराज जी ,आदरणीय अभिनव अरुण जी ,आदरणीय अरुण kumar निगम जी आभार आपका रचना को सराहने हेतु ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 17, 2013 at 1:45pm

आदरणीया सविता जी , सुन्दर विचार पूर्ण रचना के लिये बधाई !!!!

Comment by Abhinav Arun on October 17, 2013 at 7:34am

इसलिए मुट्ठी
कस कर बंद हैं
इस बीज को वृक्ष
वृक्ष से फिर बीज
इसी तरह
तो लगेगा बाग़..सुन्दर कामना ..उत्तम सन्देश ..हार्दिक बधाई इस रचना केलिए आपको आ. सविता जी  !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 16, 2013 at 11:02pm

आदरणीया सविता जी, सुंदर रचना हेतु बधाइयाँ.

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