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लघुकथा : गिफ्ट (गणेश जी बागी)

साफ साफ बताओं, आख़िर बात क्या है ? जबसे तुम अपनी छोटी बहन की शादी से लौटी हो, तुम्हारा मूड उखड़ा उखड़ा है और ढंग से बात भी नही कर रही हो, प्रकाश नें अपनी पत्नी नीतू से पूछा | 
"कुछ नही बस यूँ ही" 
"देखो 'बस यूँ ही' कहने से काम नही चलने वाला, तुम्हे मेरी कसम, सच सच बताओं हुआ क्या ?"

"प्रकाश आपने मेरी बहन की शादी मे जो अँगूठी गिफ्ट की थी न, वह किसी को पसंद नही आयी, भाभी और माँ ने आपका खूब मज़ाक उड़ाया, वो लोग कह रही थीं कि यह घटिया अँगूठी कहाँ से खरीदी है, एक तो बेहद हल्की है और डिजाइन भी देहाती टाइप, चेहरा लटकाए नीतू एक साथ बोल गयी | 

"हूउउउ तो यह बात है, अरे भाई तुम्हे तो पता ही है आजकल पैसे की दिक्कत चल रही है इसलिए अँगूठी खरीदी कहाँ, शादी में तुम्हारी माँ ने जो अँगूठी मुझे दी थी वो नई ही पड़ी थी उसी को साफ करवा कर गिफ्ट कर दिया था |

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 14, 2013 at 3:11pm

आदरणीय बागी जी .बेहद शानदार लघु कथा ..माता जी को जब पता चलेगा तब माता जी स्थिति देखते ही बनेगी ..ढेर सारी बधाई के साथ 

Comment by वेदिका on October 14, 2013 at 3:04pm

बहुत खूब ताना मारा है आपने, एक ही वार मे सारे चारों खाने चित्त !!

लाजवाब कर दिया आपने! बधाई आदरणीय!  

Comment by बृजेश नीरज on October 14, 2013 at 2:29pm

अ हा हा.....क्या बात है! बहुत अच्छी कथा! माता जी अपनी दी अंगूठी ही नहीं पहचान पायीं! बहुत खूब! आपने बहुत कसी हुई कथा लिखी! आपको हार्दिक बधाई!

सादर!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 14, 2013 at 1:37pm

आदरणीय कपिश चन्द्र जी, आप सभी का आशीर्वाद और माँ शारदे की कृपा मात्र है जो मैं कुछ लिख पाता हूँ । बहुत बहुत आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 14, 2013 at 1:35pm

आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, उत्साहवर्धन करती टिप्पणी हेतु आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 14, 2013 at 1:34pm

आभार आदरणीय संजय भाई । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 14, 2013 at 1:33pm

टिप्पणी हेतु आभार आदरणीय अजित शर्मा 'आकाश' जी । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 14, 2013 at 12:53pm

आदरणीय गणेश भाई , क्या बात है, नहले मे दहला जैसी बात हो गई !!! वा ह!!! बहुत सुन्दर लघु कथा के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!!

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 14, 2013 at 12:30pm

आदरणीय भ्राताश्री लाजवाब कितनी सहजता और सुन्दरता से लघुकथा लिखी है आपने अंत तो एकदम दमदार है. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 14, 2013 at 11:47am


   वाह !!! क्या बात है । बहुत बढ़िया लघु कथा आपने लिखी है गणेश जी । बहुत कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह दिया है आपने । बहुत बहुत बधाई । 

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