For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कैकई के मोह को

पुष्ट करता

मंथरा की

कुटिल चाटुकारिता का पोषण

 

आसक्ति में कमजोर होते दशरथ

फिर विवश हैं

मर्यादा के निर्वासन को

 

बल के दंभ में आतुर

ताड़का नष्ट करती है

जीवन-तप  

सुरसा निगलना चाहती है

श्रम-साधना

एक बार फिर

 

धन-शक्ति के मद में चूर

रावण के सिर बढ़ते ही जा रहे हैं 

 

आसुरी प्रवृत्तियाँ

प्रजननशील हैं

 

समय हतप्रभ

धर्म ठगा सा आज है फिर

 

राम ! तुम कहाँ हो ?

‌‌‌‌‌‌‌‌‍=====================

--बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

Views: 724

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on October 13, 2013 at 6:04pm

आदरणीय अरुण जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on October 13, 2013 at 6:03pm

आदरणीय आशुतोष जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 13, 2013 at 5:09pm

आदरणीय बृजेश भाई वाह अत्यंत संवेदनशील प्रस्तुति, राम ! तुम कहाँ हो ? भाई जी मेरा ह्रदय भी कई कई बार यही गुहार लगाता है. गहन भाव भरी पंक्तियाँ ह्रदय स्पर्श कर गई, क्षुब्ध ह्रदय से निकली सुन्दर रचना हेतु दिल से बधाई स्वीकारें.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 13, 2013 at 4:41pm

आदरणीय नीरज जी ..दशहरे के इस पर्व पर सबसे पह्हले आपको ढेरो बधाईयों एवं इस सुंदर रचन पर हार्दिक बधाई के साथ 

Comment by बृजेश नीरज on October 13, 2013 at 1:28pm

आदरणीय जीतेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 13, 2013 at 10:56am

आसुरी प्रवृत्तियाँ

प्रजननशील हैं

 

समय हतप्रभ

धर्म ठगा सा आज है फिर

 

राम ! तुम कहाँ हो ?

बेहद गहन, सदा की तरह, बहुत प्रभावशाली रचना, बहुत बहुत बधाई आदरणीय बृजेश जी

Comment by बृजेश नीरज on October 11, 2013 at 10:38pm

आदरणीय केवल भाई जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 11, 2013 at 8:29pm

........क्या कहने? वाह....बहुत सुन्दर कविता।    हार्दिक बधार्इ स्वीकारें। आदरणीय बृजेश  भार्इजी,  सादर,

Comment by बृजेश नीरज on October 11, 2013 at 7:26pm

आदरणीय अभिनव जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on October 11, 2013 at 7:26pm

आदरणीय अमन जी आपका हार्दिक आभार!

अपनी समझ भर ही लिख सका इसे! यदि आप कुछ मार्गदर्शन दें तो शायद मेरा प्रयास आपके लिए संतुष्टिकारक बन सके!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service