For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खड़े होकर सभी के सामने अक्सर दुतल्ले से।
जो बातें सच थीं ज्यों की त्यों कहीं हमने धड़ल्ले से।

.

सुना है राह के काँटे भी उसका कुछ न कर पाये,
मग़र पैरों मे छाले पड़ गये जूते के तल्ले से।

.

अकेला ही मैं दुश्मन के मुकाबिल में रहा अक्सर ,
मदद करने नही निकला कोर्इ बन्दा मुहल्ले से।

.

वो इन्टरनेषनल क्रिकेट की करते समीक्षा हैं,
नही निकले कभी भी चार रन तक जिनके बल्ले से।

.

तुम्हारे गाँव के बारे में ये मेरा तजुर्बा है,
बजाया बीन जब भी नाग ही निकले मुहल्ले से।

.

वो रेगिस्तान में भी देखते हैं ख्वाब पानी का ,
उन्हें उम्मीद है अब भी उसी बादल निठल्ले से।

.

मौलिक अप्रकाशित

Views: 3496

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 16, 2013 at 11:53am

इस अद्भुत ग़ज़ल को इस मंच के उपलब्धि भी मानूँगा. आपकी कोशिश और ताक़त पर मेरी हार्दिक बधाइयाँ..

जिन सुधीजनों ने सुझाव दिये हैं, उनपर गहन विचार करें और अमल करें. वो तकनीकी बातें हैं. बहुत ज़रूरी हैं.

और ऐसे ही लिखते रहें. वाह !

Comment by वीनस केसरी on October 12, 2013 at 2:31am

वाह भाई दिल खुश हो गया

आपने हर्फे कवाफी का ऐसा शानदार इस्तेमाल किया है कि ग़ज़ल में जान आ गयी

वो रेगिस्तान में भी देखते हैं ख्वाब पानी का ,
उन्हें उम्मीद है अब भी उसी बादल निठल्ले से।

इस शेर की ग़ज़लियत ने तो लुत्फ़ ला दिया .... बेहद शानदार

अन्य शेर भी हास्य के साथ वयंग्य करने में समर्थ हैं ढेरो बधाई स्वीकारें

कुछ शब्द आपने मूल वज्न से बाहर जा कर प्रयोग कर लिए हैं .,,, उनको साध लिया होता तो ये एक बेहतरीन ग़ज़ल हो सकती थी
सही वज्न यूँ है -

इन्टरनेशनल  - २२ २२
क्रिकेट   - १२
तजुर्बा तज्रिबा - २१२

कभी भी में भी भर्ती का शब्द है


तकाबुले रदीफ का दोष भी सही इंगित किया गया है

तकाबुले रदीफ़ दोष के भेद 

तकाबुले रदीफ़ दोष के दो भेद होते हैं

तकाबुले रदीफ़ दोष भेद १ - लाज्तमा--ज़ुज्ब--रदीफैन = मतला के अतिरिक्त यदि रदीफ़ का तुकांत स्वर मिसरा-ए- उला के अंत आ जाये तो उसे लाज्तमा-ए-ज़ुज्ब-ए-रादीफैन कहते हैं

तकाबुले रदीफ़ दोष भेद - लाज्तमा--तकाबुल--रदीफैन =  मतला और हुस्ने मतला के अतिरिक्त किसी शेर में यदि रदीफ़ का तुकान्त पूरा एक शब्द या पूरी रदीफ़ मिसरा-ए-उला के अंत आ जाये तो उसे लाज्तमा-ए-तकाबुल-ए-रदीफैन कहते हैं

शेर के दोषपूर्ण मतला होने भ्रम की स्थिति से बचने के लिए इस दोष से बचने की हर संभव कोशिश करनी चाहिए|
अरूजियों और उस्ताद शाइरों द्वारा केवल स्वर का उला के अंत में टकराना कई स्थितियों में स्वीकार्य बताया गया है
यदि शेर खराब न हो रहा हो और यह ऐब दूर हो सके तो इससे अवश्य बचना चाहिए परन्तु इस दोष को दूर करने के चक्कर में शेर खराब हो जा रहा है अर्थात, अर्थ का अनर्थ हो जा रहा है, सहजता समाप्त ओ जा रही है अथवा लय भंग हो रहे है अथवा शब्द विन्यास गडबड हो रहा है तो इसे रखा जा सकता है और बड़े से बड़े शाइर के कलाम में यह दोष देखने को मिलता है

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 11, 2013 at 9:15am

आदरणीय अरूण शर्मा अनन्त जी । सच तो यह है कि सुना है  राह के काँटे भी उसका कुछ न कर पाये

मग़र पैरों मे छाले पड़ गये जूते के तल्ले से। इस शेर में तकाबुले रदीफ का दोष है ही नही। अगर मतले के अलावा किसी शेर में सानी मिसरा और ऊला मिसरा में अंत में रदीफ ''से आता तो तकाबुले रदीफ का दोष होता परन्तु उपरोक्त शेर में ऐसा नही है इस लिये मेरे ज्ञान के अनुसार इसमें तकाबुले रदीफ का दोष नही है।

Comment by Sushil.Joshi on October 9, 2013 at 4:59am

तुम्हारे गाँव के बारे में ये मेरा तजुर्बा है,
बजाया बीन जब भी नाग ही निकले मुहल्ले से।.... बहुत बहुत सुंदर प्रस्तुति है आदरणीय राम अवध जी..... बधाई

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 8, 2013 at 10:55pm

आदरणीय लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने खासकर काफिया का चुनाव बेहद उम्दा है आकर्षित करता है, आदरणीय श्री बागी भ्राताश्री जी ने तकाबुले रदीफ़ का दोष बता ही दिया है. खैर शानदार ग़ज़ल पर ढेरों दाद कुबूल फरमाएं. 

वो इन्टरनेषनल क्रिकेट की करते समीक्षा हैं, (इन्टरनेशनल सही शब्द है)

Comment by मोहन बेगोवाल on October 8, 2013 at 8:28pm

बहुत प्यारी गजल के लिए - बधाई हो

वो रेगिस्तान में भी देखते हैं ख्वाब पानी का ,
उन्हें उम्मीद है अब भी उसी बादल निठल्ले से। ये शेर बहुत प्यारा लगा


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 8, 2013 at 8:11pm

ग़ज़ल की बातें समूह में "तकाबुले रदीफ़" पर विस्तृत चर्चा हुई है, आप वहां जानकारी ले सकते हैं । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 8, 2013 at 8:02pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आ० राम अवध विश्वकर्मा जी 

मंच पर ग़ज़ल की बातें समूह में तबाबुले रदीफ़ ऐब पर भी चर्चा हुई है..आप ग़ज़ल की बातें समूह में विस्तार से जानकारी ले सकते हैं  

हार्दिक बधाई 

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 8, 2013 at 7:32pm

आदरणीय श्री बागी जी आपने दूसरे शेर ''सुना है राह के काँटे भी उसका कुछ न कर पाये
मग़र पैरों मे छाले पड़ गये जूते के तल्ले से। में तगाबुले रदीफ का दोष बताया है कृपया बताने का कष्ट करें कि दोष कैसे है जिससे तगाबुले रदीफ के बारे में मेरे साथ-साथ ओपेन बुक्स आन लाइन के सभी माननीय सदस्यों का भी ज्ञान वर्धन हो सके। धन्यवाद।

Comment by विजय मिश्र on October 8, 2013 at 5:15pm
विषय आज के हिसाब से सोलह आने फिट और शेरों का क्या कहना ,झुमानेवाले हैं ,जिन्दे से कम नहीं . बहुत बहुत बधाई भाई राम अवधजी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
47 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
16 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
16 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
16 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
16 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
16 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
16 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
17 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"वैशाख अप्रैल में आता है उसके बाद ज्येष्ठ या जेठ का महीना जो और भी गर्म होता है  पहले …"
17 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"सहृदय शुक्रिया आ ग़ज़ल और बेहतर करने में योगदान देने के लिए आ कुछ सुधार किये हैं गौर फ़रमाएं- मेरी…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई जयनित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई संजय जी, अभिवादन एवं हार्दिक धन्यवाद।"
17 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service