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!!! हर काम-दिशा रति पावन हो !!!

!!! हर काम-दिशा रति पावन हो !!!
दुर्मिल सवैया छन्द आठ सगण यथा-112 आठ पुनरावृतित

// 1 //

हर मां जगती तल शीतल सी, नव जीवन दायक है जर* मां।..........*धन अर्थात लक्ष्मी
जर मां सब ध्यान धरे उर में, दर रोशन, बाहर है गर मां।।
गर मां नव दीप जले सुखदा, सुख बांट रहूं सुख को वर मां।
वर मां मुझको शिशु कृष्ण कहो, तम नष्ट करूं वर दे हर मां।।


// 2 //

समिधा सम दुर्गति नष्ट करें, सत पुष्ट करें अति पावन हो।
मन उज्वल हो कर दान सधे, तपनिष्ठ रहें मति पावन हो।।
अति दीन मलीन कुलीन बनें, सुविचार दया गति पावन हो।
नर-नारि सदा सम ज्ञान रहें, हर काम-दिशा रति पावन हो।।

के0पी0सत्यममौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 8, 2013 at 7:22pm

आदरणीय रविकर भार्इ जी,
// रवि के कर से शुभ शब्द रचे, अतिमान बढ़े निज प्राण खिले।
हिय स्नेह धरे प्रिय बाच रहे, कृत कृत्य हुए कवि धाम मिले।। //
-------------------------------------आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार। आपका स्नेह बस यूं ही मिलता रहे। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 8, 2013 at 6:58pm

आदरणीय अखिलेश भार्इ जी,    आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार।  आपका स्नेह बस यूं ही मिलता रहे।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 8, 2013 at 6:57pm

आदरणीय सुशील भार्इ जी,    आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार।  आपका स्नेह बस यूं ही मिलता रहे।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 8, 2013 at 6:54pm

आदरणीय अभिनव अरून भार्इ जी,   आपसे मान पाकर मैं अतिकृतार्थ हुआ।  आप जैसे लोगों से मिलकर ही ऐसे सदगुण विचार मेरे हिय में हिलोरें ले पा रही हैं। आपके स्नेह और हदृय से उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार।  आपका स्नेह बस यूं ही मिलता रहे।  सादर,

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 6, 2013 at 12:27pm

आदरणीय केवल भाई जी दोनों ही छंद बहुत ही सुन्दर बन पड़े हैं बहुत बहुत बधाई स्वीकारें


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 6, 2013 at 10:29am

आदरणीय केवल भाई दोनों छंद अच्छे हुए हैं बहुत बहुत बधाई ।  

Comment by vijay nikore on October 6, 2013 at 3:00am

इस सुन्दर रचना के लिए बहुत सारी बधाई।

 

सा्दर,

वि्जय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 5, 2013 at 11:48pm

’सांगोपांग दुर्मिल’ पर सम्यक प्रयास हुआ है. दूसरा सवैया भी सार्थक है.

बधाई स्वीकारें .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 5, 2013 at 11:33pm

समिधा सम दुर्गति नष्ट करें, सत पुष्ट करें अति पावन हो।
मन उज्वल हो कर दान सधे, तपनिष्ठ रहें मति पावन हो।।
अति दीन मलीन कुलीन बनें, सुविचार दया गति पावन हो।
नर-नारि सदा सम ज्ञान रहें, हर काम-दिशा रति पावन हो।।

बहुत सुंदर रचना, बहुत बहुत बधाई आदरणीय केवल जी

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 5, 2013 at 9:36pm

अति सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई इसके लिए आपको !

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