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!!! एक 'बापू' फिर बुला मां शारदे !!!

!!! एक 'बापू फिर बुला मां शारदे !!!
बह्र-2122  2122  212

प्यार जीवन में बढ़ा मां शारदे।
दर्द मुफलिस का घटा मां शारदे।।

कंट के रस्ते भी फूलों से लगे,
राम का वनवास गा मां शारदे।

भील-शोषित का यहां उध्दार हो,
एक 'बापू' फिर बुला मां शारदे।

धर्म का रथ आस्मां में जा रहा,
गर्त में धरती उठा मां शारदे।

आततायी रोज बढ़ते जा रहे,
फिर शिवा-राणा बना मां शारदे।

लेखनी का रंग गहरा हो चटक,
घाव पर मलहम लगा मां शारदे।

दृढ़ करो संवेदना सदभाव से,
आप ही परमात्मा मां शारदे।

कर्म का फल भूल जाओं धर्म में,
भाव 'सत्यम' साधना मां शारदे।

के0पी0सत्यम / मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 3, 2013 at 8:33pm

आदरणीय भण्डारी भार्इ जी,    आपके अपार स्नेह और गजल अनुमोदन हेतु...आपका तहेदिल से आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 3, 2013 at 8:31pm

आदरणीय कुन्र्ती जी,    आपके स्नेह और गजल अनुमोदन हेतु...आपका तहेदिल से आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 3, 2013 at 8:30pm

आदरणीय अरून अनन्त भार्इ जी,    आपके स्नेह औ मार्ग दर्शन  हेतु...आपका तहेदिल से आभार। सादर,

Comment by बृजेश नीरज on October 3, 2013 at 7:43pm

इस सुन्दर अभिव्यक्ति पर आपको हार्दिक बधाई, भाई केवल प्रसाद जी!

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 3, 2013 at 4:02pm

फिर शिवा-राणा बना मां शारदे। सुंदर भाव , अच्छे शब्द ।                              

केवल भाई बधाई । गीत गज़ल दोनों का मजा आया । 

Comment by वेदिका on October 3, 2013 at 3:36pm

भक्तिरस मे भीगी उज्ज्वल कामना

बधाई आ0 सत्यम जी!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 3, 2013 at 3:28pm

आदरणीय केवल जी ...भक्ति मय कर दिया आपने ...आपकी माँगी हर मुराद पूरी हो ..सादर बधाई के साथ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 3, 2013 at 1:43pm

आदरणीय केवल भाई , बहुत सुन्दर गज़ल कही है आपने !! बहुत बहुत बधाई !!!! आदरणीय अरुण भाई की कही बातों को ज़रूर देख लें !!  !!! सादर !!!

Comment by coontee mukerji on October 3, 2013 at 1:38pm

बहुत सुंदर विचार

.आततायी रोज बढ़ते जा रहे,
फिर शिवा-राणा बना मां शारदे

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 3, 2013 at 12:45pm

आदरणीय केवल भाई जी ग़ज़ल के माध्यम से बहुत ही सुन्दर आह्वान किया है आपने काश ऐसा हो, कई अशआरों में तकाबुले रदीफ़ का दोष है कृपया पुनः देख लें.

आपने ग़ज़ल का वज्न 2122  2122  2122  212 लिखा है जबकि वज्न 2122  2122  212 है.

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