For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इन्द्रजाल ......(दोहावली)// डॉ० प्राची

आँख मिचौली खेलता, मुझसे मेरा मीत 

अंतरमन के तार पर, गाए मद्धम गीत 

जैसे सूरज में किरण, चन्दन बसे सुगंध 

प्रियतम से है प्रीत का, मधुरिम वह सम्बन्ध  

क्यों अदृश्य में खोजता, मनस सत्य के पाँव 

सहज दृश्य में व्याप्त जब, उसकी निश्छल छाँव 

संवेदन हर गुह्यतम, सहज चित्त को ज्ञप्त

आप्त प्रज्ञ सम्बुद्ध वो, ज्ञानांजन संतृप्त 

प्रीत प्रखरता जाँचती, नित्य नियति की चाल 

मोहन लोभन फाँसते, छद्म इन्द्र के जाल 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 962

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on September 30, 2013 at 5:46pm
"क्यों अदृश्य में खोजता, मनस सत्य के पाँव
सहज दृश्य में व्याप्त जब, उसकी निश्छल छाँव |"

- अलौकिक भाव ,भावना और श्रद्धा से भरी एक अर्पित अभिव्यक्ति . साधुवाद प्राचीजी .

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 30, 2013 at 11:54am

आदरणीया मीना पाठक जी 

दोहावली का अनुमोदन कर उत्साहवर्धन करने के लिए हृदय तल से आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 30, 2013 at 11:52am

प्रिय अरुण शर्मा 'अनंत' जी 

दोहा दर दोहा अपनी सहज प्रतिक्रया देने के लिए बहुत बहुत अभार..

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 30, 2013 at 11:52am

वाह वाह आदरणीया क्या ही ग़ज़ब की दोहावली रची है आपने

सादर बधाई स्वीकारिये इस सुन्दर रचना पर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 30, 2013 at 11:48am

दोहावली को समय दे कर रसास्वादन करने के लिए आभार आ० जीतेंद्र जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 30, 2013 at 11:47am

परम को समर्पित इस अभिव्यक्ति पर आपकी सराहना मिली 

सादर धन्यवाद आ० विजय जी 

Comment by Meena Pathak on September 30, 2013 at 11:42am

आँख मिचौली खेलता, मुझसे मेरा मीत 

अंतरमन के तार पर, गाए मद्धम गीत ..... अति सुन्दर .. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आ० प्राची जी 

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 30, 2013 at 11:27am

आँख मिचौली खेलता, मुझसे मेरा मीत 

अंतरमन के तार पर, गाए मद्धम गीत ..वाह अत्यंत सुन्दर

जैसे सूरज में किरण, चन्दन बसे सुगंध 

प्रियतम से है प्रीत का, मधुरिम वह अनुबंध  ...अय हय हय अत्यंत मनोहारी

क्यों अदृश्य में खोजता, मनस सत्य के पाँव 

सहज दृश्य में व्याप्त जब, उसकी निश्छल छाँव ... सुन्दर सत्य

संवेदन हर गुह्यतम, सहज चित्त को ज्ञप्त

आप्त प्रज्ञ सम्बुद्ध वो, ज्ञानांजन संतृप्त  ... लाजवाब उम्दा

प्रीत प्रखरता जाँचती, नित्य नियति की चाल 

मोहन लोभन फाँसते, छद्म इन्द्र के जाल  ... क्या कहने दीदी बहुत ही उम्दा

आदरणीया प्राची दीदी अत्यंत सुन्दर मनोहारी हृदयस्पर्शी दोहावली प्रस्तुत की है आपने हृदयतल से ढेरों बधाइयाँ स्वीकारें.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 30, 2013 at 8:49am

क्यों अदृश्य में खोजता, मनस सत्य के पाँव 

सहज दृश्य में व्याप्त जब, उसकी निश्छल छाँव....बहुत सुंदर

संवेदन हर गुह्यतम, सहज चित्त को ज्ञप्त

आप्त प्रज्ञ सम्बुद्ध वो, ज्ञानांजन संतृप्त .......बेहद गहन सोच का चित्रण

अनुपम दोहावली, बधाई स्वीकारें आदरणीया डा. प्राची जी

Comment by vijay nikore on September 30, 2013 at 4:33am

रससिक्त, मनमोहक भावाभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीया।

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
23 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service