For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दर्द क्या इक नया फिर कोई बो रहा ( गज़ल - गिरिराज भंडारी )

212    212    212     212 

.

छांव में धूप का क्यों गुमाँ हो रहा

दर्द क्या इक नया फिर कोई बो रहा

 

सड़ चुकी मान्यता सांस फिर ले रही

दिन चढ़े तक कोई शख़्स ज्यों सो रहा  

 

ज़ाहिरन बात ये कह रहा है करम

बढ़ गया पाप जब तो कोई धो रहा

 

हाल की शक्ल में फ़र्क़ कुछ तो रहे

कल गया बीत वो जो रहा सो रहा

 

पश्चिमी कुछ हवा सभ्यता खा रही

आदमी इसलिये आदमी खो रहा

 

तितलियाँ ख़ौफ़ से उड़ नही पा रहीं

वाक़िआ कुछ बुरा रोज़ ही हो रहा

 

रोशनी भी कहीं दिख रही है मगर

अब्र भी कुछ घना उस तरफ हो रहा

 

    मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 943

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 24, 2013 at 8:08am

आदरणीया वन्दना जी , हौसला अफज़ाई के लिये आपका दिली शुक्रिया !!

Comment by vandana on September 24, 2013 at 7:15am

तितलियाँ ख़ौफ़ से उड़ नही पा रहीं

वाक़िआ कुछ बुरा रोज़ ही हो रहा

बेहतरीन चिंतन ...सुन्दर गज़ल 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 23, 2013 at 10:43pm

आदरणीय राज लाल्ली भाई , हौसला अफज़ाई केलिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 23, 2013 at 10:41pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , आपकी सराहना हमेशा मेरी उत्साह वर्धन करती रही है , ऐसे ही स्नेह बनाये रखें !! आपका बहुत आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 23, 2013 at 10:39pm

आदरणीया आन्नपूर्णा जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार !!

Comment by राज लाली बटाला on September 23, 2013 at 9:50pm

बहुत खूब . गिरिराज जी!!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 23, 2013 at 8:34pm

छांव में धूप का क्यों गुमाँ हो रहा

दर्द क्या इक नया फिर कोई बो रहा.......वाह! शानदार मतला

पश्चिमी कुछ हवा सभ्यता खा रही

आदमी इसलिये आदमी खो रहा.........बहुत सटीक सच्चाई

बेहतरीन गजल, बधाई स्वीकारें आदरणीय गिरिराज जी

Comment by annapurna bajpai on September 23, 2013 at 7:40pm

आदरणीय भण्डारी जी शानदार गजल हुई है । आपको बहुत बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 23, 2013 at 6:26pm

आदरणीय बड़े भाई विजय निकोरे जी , आपने गज़ल का समर्थन किया , सराहना की इसके लिये आपका बहुत आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 23, 2013 at 6:23pm

आदरणीय अभिनव भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका बहुत आभार !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service