For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल:मुजरिम मैं नहीं,पर मुफ़लिसी..........

मुजरिम मैं नहीं पर मुफ़लिसी गोयाई छीन लेती है
दौलत आज भी इन्साफ की बीनाई छीन लेती है

हैं जौहर आज भी मुझ में वही तेवर भी हैं लेकिन
सियासत अब मेरे हाथों से रोशनाई छीन लेती है

नफरत थक गयी दामन मेरा मैला न कर पाई
मोहब्बत मेरे दामन से हर रुसवाई छीन लेती है

यही रहज़न कभी रहबर हुआ करता था बस्ती का
ग़रीबी रंग में आती है तो अच्छाई छीन लेती है


~सालिम शेख
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 838

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by saalim sheikh on September 20, 2013 at 2:51pm

धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी,मेरा सौभाग्य है की आप को मेरा एक भी शेर पसंद आया, जी मैं पूरी कोशिश कर रहा हूँ की ओबीओ जैसे उत्तम मंच से कुछ हासिल कर सकूँ,ग़ज़ल के बारे में काफ़ी कुछ यहाँ जानने को मिला, और बहुत कुछ रोज़ सीख रहा हूँ,मैं बहुत अभारी हूँ इस मंच का और आप सभी गुरुजनों का,आदरणीय कृपा बने रखें

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 19, 2013 at 11:08am

आखिरी द्विपदी तो बहुत कुछ कह गयी भाई.. दिल से बधाई कह रहा हूँ.

शुभचिंतकों के सुझावों पर आप गंभीरता से अमल कर रहे हैं यह संतोष की बात है.

Comment by saalim sheikh on September 18, 2013 at 3:14pm

आदरणीय विजय निकोर जी सराहना के लिए तहे दिल से शुक्रिया 

Comment by saalim sheikh on September 18, 2013 at 3:12pm

आ0  vijayashree जी बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by saalim sheikh on September 18, 2013 at 3:12pm

जी बेशक आदरणीय ललित कुमार जी मैं भी गज़ल ही की तरफ क़दम बढ़ाना चाहता हूँ बस आप गुरुजनों का मार्गदर्शन और सहयोग मिल जाए तो ये रास्ता भी आसान हो जायगा 

Comment by vijay nikore on September 18, 2013 at 1:13pm

सभी शेर खूबसूरत हैं। बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijayashree on September 18, 2013 at 12:45pm

नफरत थक गयी दामन मेरा मैला न कर पाई 
मोहब्बत मेरे दामन से हर रुसवाई छीन लेती है

बहुत खूब सलीम शेख़ जी 

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on September 18, 2013 at 6:01am

आपकी आँखों में अब वो सजल होना चाहती है
आपकी आजाद कविता ग़ज़ल होना चाहती है

Comment by saalim sheikh on September 17, 2013 at 1:32pm

आ0  जितेन्द्र 'गीत'  जी बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by saalim sheikh on September 17, 2013 at 1:31pm

आदरणीय Abhinav Arun जी सराहना एवं मार्गदर्शन के लिए तहे दिल से शुक्रिया 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
5 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service