For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे

नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे 

नई डगर पे अब क़दमों को मोड़ दे!!


राहों में जब
तेरी कंटक आयेंगे
उलझेंगे फिर
मन को बहुत डरायेंगे
आगे बढ़कर उस डाली को तोड़ दे
जहरीली मूलों को तू झिंझोड़ दे
नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे!!

घर के तेरे
दरवाजे भी टोकेंगे
मर्यादा की
बैसाखी से रोकेंगे
आगे बढ़कर उनके रुख को मोड़ दे
घूंघट में छुप कर शर्माना छोड़ दे
नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे!!

दुश्मन तेरे
होंसलों को ढापेंगे
अवसर पाकर
तेरे कद को नापेंगे
उठकर उनकी गर्दने तू मरोड़ दे
अबला तू खुद को कहलाना छोड़ दे
नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे!!

तेरे साथी
घर से बाहर आयेंगे
तेरे क़दमों
से वो कदम मिलायेंगे
एक हाथ से दूजा हाथ तू जोड़ दे
दुराचारियों के मंसूबे तोड़ दे
नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे!!

तुझ में दुर्गा
तुझी में शक्ति छुपी हुई
समझा दे तू
बैरी को अब अति हुई
झूठे बंधन झूठी रस्में छोड़ दे
राहों के पत्थर ठोकर से फोड़ दे
नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे!!
नई डगर पे अब क़दमों को मोड़ दे!!
*******************************

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 665

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by annapurna bajpai on September 14, 2013 at 11:23pm
घर के तेरे
दरवाजे भी टोकेंगे
मर्यादा की
बैसाखी से रोकेंगे
आगे बढ़कर उनके रुख को मोड़ दे
घूंघट में छुप कर शर्माना छोड़ दे
नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे!!....................वाह !!!!! अति सुंदर सटीक रचना आपको बहुत बधाई आदरणीया राजेश कुमारी जी ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 14, 2013 at 11:12pm

आदरणीय शिज्जू जी  गीत आपको पसंद आया मेरा लेखन सार्थक हुआ  हार्दिक आभार आपका


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 14, 2013 at 11:11pm

आदरणीय अखिलेश जी गीत आपको पसंद आया मेरा लेखन सार्थक हुआ आपकी सलाह सराहनीय है हार्दिक आभार आपका 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 14, 2013 at 11:09pm

आदरणीय लक्ष्मण जी आपकी बातो से सहमत हूँ आज का दौर बदलाव चाहता है तभी नारी अपने स्वाभिमान ,अपना अस्तित्व ,को बचा  पाएगी रचना आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ हृदय से आभारी हूँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 14, 2013 at 10:15pm

आदरणीया राजेश दीदी नारी जाति का उत्साहवर्धन करती इस कामयाब रचना के लिये दिली दाद कुबूल करें

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 14, 2013 at 9:51pm

नारी जाति को जगाने का सार्थक काम किया है आपने, बधाई राजेश कुमारीजी। नारी शब्द से पहले " हे " लगा देने से उसे               और सम्मान  मिलता। (  हे नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे )


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 14, 2013 at 9:48pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी गीत का अनुमोदन करने के लिए दिल से आभारी हूँ  मेरा लिखना सार्थक हुआ 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 14, 2013 at 6:27pm

नारी तू पंथ पुराना छोड़ दे | समय परिवर्तन शील है | समय के साथ बदलाव न कर पाने के कारण पिछड़ जाने का अहसास 

कराती सुन्दर रचना : भारतीय नारी घुंघट में रहती शर्माती रही है, उनके लिए सार्थक सन्देश देती विशषकर नारी जगत को 

आगे बढ़ने के लिए आह्वान करती ऐसे रचनाए आवश्यक है जो नारी समाज में चेतना ला सके | ढेरों बधाईयाँ आदरणीया 

राजेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 14, 2013 at 6:05pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी , नारी जागृति के लिये बहुत ही अच्छा गीत रचना !! हर बन्द प्रवाह मे है !! हार्दिक बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service