For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - इल्म की रोशनी नहीं होती !

ग़ज़ल –

२१२२   १२१२   २२

इल्म की रोशनी नहीं होती ,

ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं होती |

 

एक कोना दिया है बच्चों ने ,

और कुछ बेबसी नहीं होती |

 

रंग आये कि सेवई आये ,

तनहा कोई ख़ुशी नहीं होती |

 

दिल के टूटे से शोर होता है ,

ख़ामुशी ख़ामुशी नहीं होती |

 

सारे चेहरे छुपे मुखौटों में ,

दिल में भी सादगी नहीं होती |

 

माँ के आँचल से दूर हैं बच्चे ,

बाप से बंदगी नहीं होती |

 

जी हुज़ूरी करूँ सलामी दूं ,

मुझसे ये नौकरी नहीं होती |

 

झूठ छाया है हर रिसाले में ,

सच की सुर्खी कभी नहीं होती |

 

*दौरे हाज़िर भी एक बवंडर है ,

आँधियों की कमी नहीं होती |

*संशोधित 

(मौलिक और अप्रकाशित)

        - अभिनव अरुण 

          [१२०९२०१३]

Views: 1287

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on September 14, 2013 at 9:31am

आ. श्री वीनस जी आपकी कक्षाओं से शिल्प सीख रहा हूँ वरना मैं तो ग़ज़ल लिख रहा था कह कहाँ रहा था ?? ..सो बहुत आभार आपका .. मेरी ग़ज़लों में बस भाव - कहन मेरे और अगर इश्क वाल लव की तरह शिल्प वाला शेर है तो वो आपका आपके नाम ..आभार और नमन आपका !! 

..खामुशी को पढने बोलने में अलग ही आनंद है दिल से साथी पढ़ बोल कर देखें और यहाँ बहर में बैठ गया सो खामुशी है ..वरना मैं भी खामोश ही रहता :-)

Comment by Abhinav Arun on September 14, 2013 at 9:28am

दौरे हाज़िर भी एक बवंडर है ,

आँधियों की कमी नहीं होती |

           ... आ. बागी जी सही कहा ध्यान नहीं गया अगर आखिरी शेर को इस तरह कर दें तो तागाफुले रदीफ़ से बचा जा सकता है डायरी में ठीक कर लिया है ! सादर आभार सहित !!

Comment by Abhinav Arun on September 14, 2013 at 9:20am

आदरणीय श्री बागी जी ग़ज़ल की सराहना के लिए धन्यवाद ..जी हजुरी वाला शेर बस मिज़ाज का शेर है ...कह दिया सो कह दिया .... हां ये भी सत्य है आज रोटी रोज़ी हकीकत है वरना कोहराम मचाना हमें भी खूब आता है :-) आभार !!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2013 at 9:05am

//

जी हुज़ूरी करूँ सलामी दूं ,

मुझसे ये नौकरी नहीं होती |//

आय हाय हाय, क्या बात कही है आदरणीय अभिनव भाई जी, दिल जीत लिया, खूबसूरत ख्याल, सभी अश आर बढ़िया लगे, अंतिम शेर पर तवज्जो चाहूँगा, तकाबुले रदिफ़ दोष लक्षित है |

बहुत बहुत बधाई प्रेषित है इस ग़ज़ल पर |

Comment by वीनस केसरी on September 13, 2013 at 7:40pm

खामोशी (मूल शब्द) २२२
खामोशी (खामुशी अनुसार) २१२

खामोशी (खमोशी अनुसार) १२२

अपवाद स्वरूप ग़ज़ल में तीनों स्वीकार्य है इसका कोई नियम में उल्लेख नहीं मिलेगा ...
जैसे तरह १२ को (तर्ह अनुसार) २१ भी सर्व स्वीकार्य है, इसका भी कोई नियम नहीं है ...
ये नियम के वो अपवाद हैं जो किसी न किसी रूप में हर विधा में मिलते हैं ....

सादर

Comment by annapurna bajpai on September 13, 2013 at 6:38pm

आदरणीय अभिनव अरुण जी अच्छी गज़ल हुई है बधाई स्वीकारें ।

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 13, 2013 at 3:20pm

वाह वाह आदरणीय अरुण भाई जी लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने आनंद आ गया पढ़कर बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 13, 2013 at 2:00pm

सारे चेहरे छुपे मुखौटों में ,

दिल में भी सादगी नहीं होती |.......वाह ! क्या कहने, चेहरों पे सादगी हो तो क्या, दिल में सादगी ही नही

बहुत ही उम्दा गजल , तहे दिल से दाद कुबूल कीजिये आदरणीय अभिनव अरुण जी

Comment by मोहन बेगोवाल on September 13, 2013 at 1:39pm

अरुण भाई,

बहुत अच्छी गजल - बधाई हो 

सारे चेहरे छुपे मुखौटों में ,

दिल में भी सादगी नहीं होती | ये शे'र बहुत अच्छा लगा 

Comment by बृजेश नीरज on September 13, 2013 at 11:56am

आदरणीय गिरिराज जी,
यही तो मसला है। हम हिन्दी में गजल लिखते समय उर्दू शब्दकोश क्यों देखें। उर्दू शब्दकोश उर्दू लिपि के लिए है। देवनागरी लिपि के लिए तो नहीं है। जब हम हिन्दी में गजल लिखते हैं तो क्या यह बेहतर नहीं कि हम उन्हें उनके सही रूप में लिखें। उच्चारण के समय मात्रा गिरा लें?
हिन्दी छंद विधान में का, के, जैसे कारकों की मात्रा गिराने का विधान है लेकिन हम लिखते तो उन्हें सही रूप में ही हैं?
सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
19 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
20 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service