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पाँव मेरे वहीं पर ठिठक से गए

जिस जगह तुम गए थे मुझे छोड़कर

मैं वहीं पर खड़ा ये ही देखा किया

कैसे जाता है कोई मुँह मोड़कर

 

कितने वादे किए थे तुमने मगर

इन कलियों को खिलना कहाँ था लिखा

इन शाखों पर चिड़िया चहकती नहीं

कब पेड़ों से पतझड़ हुआ था विदा

अब बहारें उधर से गुजरती नहीं

जो राहें तुम तन्हा गए छोड़कर

 

अश्क तो आँख से अब छलकते नहीं

सब घटा बन तुम्हारी तरफ हैं गए

चाँदनी मेरी छत पर ठहरती नहीं

ख्वाब भी छोड़ मुझको चले हैं गए

इन साँसों को अब भी प्रतीक्षा तेरी

कैसे रखूँ मैं इनको संग जोड़कर

-        बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

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Comment by बृजेश नीरज on September 6, 2013 at 7:19pm

आदरणीया गीतिका जी मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on September 6, 2013 at 7:18pm

आदरणीया प्राची जी आपका हार्दिक आभार!
यह कुछ पुरानी रचना है। यह मैंने तब लिखी थी जब मैं गीत लिखने का पहली बार प्रयास कर रहा था। आगे आपके मानकों पर खरा उतर सकूं, ऐसी मेरी कोशिश रहेगी।
सादर!

Comment by वेदिका on September 6, 2013 at 4:02pm

बहुत सुंदर भाव भीनी प्रस्तुति!!

मुझे यहाँ प्रवाह बाधित लगा,

//जो राहें तुम तन्हा गए छोड़कर

कैसे रखूँ मैं इनको संग जोड़कर// मेरे मन मे ऐसे खयाल आया ....कैसे इनको रखूँगा मै संग जोड़कर|

आदरणीय बृजेश जी! ये मेरे व्यक्तिगत विचार है| अन्यथा नही लीजिये|

सादर शुभकामनायें !! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 6, 2013 at 3:12pm

आदरणीय बृजेश जी 

आपकी एक अलग सी प्रस्तुति... किसी अपने के वियोग को बहुत संवेदनशीलता के साथ शब्द मिले हैं... भाव प्रवणता के कारण प्रस्तुति हृदय तक पहुँचने में सक्षम है...फिर भी आपसे कहीं और बेहतर की उम्मीद है. :)

सादर शुभकामनाएँ इस प्रस्तुति पर.

Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 7:13pm

आदरणीय लक्ष्मण जी, आपका हार्दिक आभार! आप पर मुझे पूर्ण विश्वास है। आप जो कहेंग,े सच कहेंगे, सच के सिवा कुछ नहीं।
सादर!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 5, 2013 at 6:42pm

प्रतीक्षा रत रहे आदरणीय,

जो गया वो आयगा मुंह फेरकर 

बहारे भी लाएगी हवा के झोके 

झलकेंगे अश्क भी 

आँखों से ढलक कर | -  बात में दम है, करे विश्वास लक्ष्मण का, अपना समझकर | फिलहाल बधाई ले, कहाँ जो खुलकर 

Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 2:04pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपका हार्दिक आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 5, 2013 at 6:40am

बृजेश भाई जी , विरह और एकाकीपन का बहुत अच्छा चित्रण !! कोटिशः बधाई !!

Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 6:10am

आदरणीय जितेन्द्र जी बहुत बहुत आभार!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 4, 2013 at 11:50pm

सुंदर भावों से पिरोई रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय बृजेश जी

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