For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

घुट-घुट के जीना सीख लिया

रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया,

औरों को खुशियाँ देने को, छुप-छुप के रोना सीख लिया।

 

ताने उलाहने सुन कर हम बने रहे हर बार अंजान,

वो यूं ही सताते रहे हमे समझा न कभी हमे इंसान।

मेरी आंखो के सागर का बूंद-बूंद तक लूट लिया और,

रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया।

 

मेरे मन की गहराई मे अब उलझनों का घेरा हैं

हर रात बीते रुसवाई मे, बेबस हर सवेरा है।

मौसम की कड़ी तपन मे घावों को सीना सीख लिया और

रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया।

 

ठोकर खाकर देखा चारो तरफ हैं स्वार्थ की धुंध,

खामोशी से सहकर सबकुछ आंखे अपनी करली बंद,

मेरा ही मन जाने है क्या-क्या मुझपर बीत गया और

रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया। 

- वसुधा निगम 

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

Views: 961

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 4, 2013 at 10:29am

मेरा ही मन जाने है क्या-क्या मुझपर बीत गया और
रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया। -------वाह वाह वसुधा निगम जी आज के हालात से जूझती नारी की हृदय व्यथा को बहुत सुन्दरता से उकेरा है रचना में बहुत बहुत बधाई

Comment by Shyam Narain Verma on September 4, 2013 at 10:09am
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.....
Comment by Vasudha Nigam on September 4, 2013 at 9:42am

आदरणीय बागी जी, राम शिरोमणि जी, अन्नपूर्णा जी एवं मीना जी

आप सभी का हार्दिक आभार, इस मंच से ही प्रेरणा मिलती है। 

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 8:55am

रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया। ..... बहुत सुंदर प्रस्तुति  .... हार्दिक बधाई


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 4, 2013 at 8:45am

जीवन की आपाधापी में रिश्तों का मर्यादा कहाँ  भूलने लगता है पता ही नहीं चलता, बहुत ही सुन्दर भाव व्यक्त हुआ है, बधाई आदरणीया वसुधा निगम जी । 

Comment by annapurna bajpai on September 4, 2013 at 12:31am

adarniya vasudha ji  sundar rachna hetu badhai swikaren .

Comment by ram shiromani pathak on September 3, 2013 at 10:12pm

बहुत सुन्दर रचना //हार्दिक बधाई आपको आदरणीया

आपकी रचना पढ़कर कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं मुझे

तस्वीर-ए-मोहब्बत थी जिसमें हमने वो शीशा तोड़ दिया,
हँस हँस के जीना सीख लिया घुट घुट के मरना छोड़ दिया। 

 फ़िल्म 'संघर्ष' से आशा जी का गाया "तस्वीर-ए-मोहब्बत थी जिसमें हमने वो शीशा तोड़ दिया तोड़ दिया तोड़ दिया, हँस हँस के जीना सीख लिया घुट घुट के मरना छोड़ दिया छोड़ दिया छोड़ दिया"। शक़ील बदायूनी का गीत है और नौशाद साहब की तर्ज़।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
17 minutes ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
20 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
21 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी, बहुत धन्यवाद"
21 minutes ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार। हौसला बढ़ाने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रियः"
43 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय "
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी ठीक है  मशविरा सब ही दे रहे हैं पर/ मगर ध्यान रख तेरे काम का क्या है ।"
1 hour ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी सादर अभिवादन स्वीकार करें। अच्छी ग़ज़ल हेतु बधाई।"
2 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय मिथिलेश जी सादर नमस्कार। बहुत बहुत आभार आपका।"
2 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर नमस्कार। बहुत बहुत शुक्रियः आपका"
2 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी सादर अभिवादन स्वीकार करें। अच्छी ग़ज़ल हेतु बधाई आपको।"
2 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सम्माननीय ऋचा जी । बहुत बहुत आभार"
2 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service