For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पांच दोहे

 

खुद के अन्दर झाँक के, पढ़  ले तू आलेख

अपने ऐसे हाल का,  खुद  खींचा  आरेख

 

बाहर पानी से बुझे, कण्ठ लगी जो प्यास

भीतर जी मे जो लगी,कौन बुझाये प्यास

 

पंछी घर को लौटते, साँझ लगी गहराय

रे मन चल लग ठौर से,तू काहे पछुवाय

 

अन्धियारी में जुँ रहे, दीपक ही की खोज

अपने अन्दर खोजना, अपना सुख तू रोज   

 

बंद आँख कर देखिये,त्रितिय आँख की ओर

ध्यान सरलता से करें,तनिक न दीजे जोर

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 1180

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2013 at 9:15pm

बहुत सन्देश परक दोहे रचे हैं आदरणीय गिरिराज जी हार्दिक बधाई|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2013 at 8:43pm

आदरणीय आशीष भाई , बहुत बहुत आभार !! आपको  त्वरित दोहा  रचना के लिये अलग से बहुत बधाई !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2013 at 8:38pm

रविकर भाई , आपका बहुत बहुत शुक्रिया !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2013 at 8:37pm

आदरणीया शुभ्रा जी , आपका आभार !!! आपने सही कहा , मेरी बात आपने पूरी तरह दो लाइन मे कह दी !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2013 at 8:35pm

श्याम भाई , क्या बात कही , वाह वाह !! गागर मे सागर !!

मेरी कविता सूर्यपुत्री हो,  आग का  वह पंछी,   जो किसी भी पिंजरे की सलाखों को भस्मीभूत कर दे !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2013 at 8:26pm

श्याम भाई जी , सरहना के लिये आपका बहुत शुक्रिया , और उससे दोगुना आपकी सलाह के लिये !! लिख लिया हूँ दिमाग मे , कोशिश जज़ूर करूंगा !! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2013 at 8:22pm

आदरणीय, राम शिरोमणी भाई ,दोहो पर विचार व्यक्त करने के लिये आभार !! अन्यथा लेने जैसी बात कभी नही होगी , ये मै अपने लिये कह सकता हूँ  !! पछुवाय शब्द क्षेत्रिय बोली के शब्दों मे से है जिसका अर्थ पीछे होने से है !! 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 2, 2013 at 8:19pm

आ0 भण्डारी भाई जी, बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है। भाई जी, आपकी कथ्य शैली और मात्रा विधान बहुत बढि़या है। थोड़ा संप्रेषण पर भी कार्य करें। बहुत-बहुत शुभकामनाएं। सादर

Comment by रविकर on September 2, 2013 at 8:07pm

बढ़िया सीख-
आभार आदरणीय-

Comment by shubhra sharma on September 2, 2013 at 7:54pm

आदरणीय गिरिराज सर , विचार  और शिक्षाप्रद दोहे, आज के परिपेक्ष्य में सटीक क्योंकि लोग खुद की कमी को ना देख दूसरी में ही कमी खोजने में लगे रहते है , बहुत बहुत बधाई   

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
12 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सीमा के हर कपाट को - (गजल)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२कानों से  देख  दुनिया  को  चुप्पी से बोलना आँखों को किसने सीखा है दिल से…See More
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीया प्राची दीदी जी, आपको नज़्म पसंद आई, जानकर खुशी हुई। इस प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हैं। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आभार "
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय, यह द्वितीय प्रस्तुति भी बहुत अच्छी लगी, बधाई आपको ।"
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह आदरणीय वाह, पर्यावरण पर केंद्रित बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई ।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन कुंडलियाँ छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service