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हँसते मौसम कभी आते जाते रहे

2 1 2 2   1 2 2 1   2 2 1 2

हँसते मौसम यूँ ही आते जाते रहे
गम के मौसम में हम मुस्कुराते रहे

यादें परछाइयाँ बन गयीं आजकल
हमसफ़र हम उन्हें ही बताते रहे

कल तेरा नाम आया था होंठों पे यूँ
जैसे हम गैर पर हक़ जताते रहे

दिल के ज़ख्मों को वो सिल तो देता मगर
हम ही थे जो उसे आजमाते रहे

तल्ख़ बातें ही अब बन गयीं रहनुमाँ
मीठे किस्से हमें बस रुलाते रहे

चल दिये हैं सफ़र में अकेले ही हम
साथ अपने ग़मों को बुलाते रहे

रूठ कर तुम गये सारा जग ले गये
चाँद तारे भी हमको चिढ़ाते रहे

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on August 24, 2013 at 7:17pm

लाजवाब शब्दिता जी ,पूरी ग़ज़ल समां बाँधने सफल रही है -

तल्ख़ बातें ही अब बन गयीं रहनुमाँ 
मीठे किस्से हमें बस रुलाते रहे

इस शेर के लिए विशेष बधाई..भाव गहरे हैं .. !!
Comment by sanju shabdita on August 24, 2013 at 7:01pm

bahut shukriya aadarniya amit dubey ji sneh yun hi banayen rakhen

Comment by sanju shabdita on August 24, 2013 at 6:59pm

aadarniya nadir khan ji aapka bahut-bahut aabhar

Comment by नादिर ख़ान on August 24, 2013 at 6:20pm

दिल के ज़ख्मों को वो सिल तो देता मगर 
हम ही थे जो उसे आजमाते रहे ...

रूठ कर तुम गये सारा जग ले गये 
चाँद तारे भी हमको चिढ़ाते रहे ....

बहुत खूब कहा अदरणीय संजू जी .. बधाई 

Comment by अमित वागर्थ on August 24, 2013 at 6:08pm

यादें परछाइयाँ बन गयीं आजकल
हमसफ़र हम उसे ही बताते रहे       wah wah bahut khoob sanju ji

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