For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

!!! प्याज मंहगे आ गए !!!

बह्र- 2122 2122 2122 212

पत्थरों के शहर में ये जीव कैसे आ गए।

लोभ है सत्ता से इनको होड़ करके आ गए।।1

श्वेत पोशाकों में सजते, खून से लथपथ सने।

रोज मरते सत से राही, कंस जब से आ गए।।2

धर्म बीथीं भी हिली है, भू कपाती हलचलें।

भाई से भाई लड़े हैं, जाति जनने आ गए।।3

नफरतों की आग फैली, द्वेष फलते पीढि़यां।

अम्न जिंदा जल रही है, घी गिराने आ गए।।4

वक्त ने हमको पढ़ाया, सब्र में बलराम है।

फिर हमें क्यों वोट छलते, राज करने आ गए।।5

पाठशाला के नेवाले छीनते हैं वारिसे।

संसदों के राजदारी जुर्म ढकने आ गए।।6

हम समन्दर के निवासी, छुद्र नदिया छेड़ती।

ताल-नाले रोज अकड़े, आंख ताने आ गए।।7

व्यभिचारी बढ़ रहे हैं, भ्रूण हत्या क्यों रूके?

दंभ-लोभी बेटियों को फिर जलाने आ गए।।8

जिन्दगी की डोर छोटी, राजनीतिक लास्टिक।

फिर से नेता द्रौपदी की, चीर हरने आ गए।।9

कब कहा था आस्मां के रेट नीचे लाऊंगा।

लो गिरे रूपया यहां पर, प्याज मंहगे आ गए।।10

चापलूसों की कहानी, ओट से यह कह रही।

अब हलाली खूब होगी, यम बचाने आ गए।।11

के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित

Views: 752

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 20, 2013 at 9:02pm

आ0 जितेन्द्र जी,  आपके आत्मीयता, स्नेह और गजल सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 20, 2013 at 9:01pm

आ0 माथुर जी,  आपके स्नेह और गजल सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, सादर

Comment by annapurna bajpai on August 19, 2013 at 10:46pm
adarniy kewal bhai ji badhiya gazal hetu badhai swikaren .
Comment by रविकर on August 19, 2013 at 10:53am

अच्छे भाव-
बधाई आदरणीय सत्यम जी-

Comment by वेदिका on August 19, 2013 at 1:41am

वाह! बहुत खूबसूरत और यथार्थ को दर्शाती गजल लिखी आपने!! 

Comment by विवेक मिश्र on August 18, 2013 at 9:48pm

इस सम-सामयिक ग़ज़ल के सृजन पर हार्दिक बधाई केवल जी. हरेक शे'र में निहित केन्द्रीय भाव बहुत उम्दा है. परन्तु कुछ अश'आर थोड़ी और मेहनत माँगते हैं. जैसे - 

/व्यभिचारी बढ़ रहे हैं, भ्रूण हत्या क्यों रूके?/ - मिसरा वज्न में है क्या?

/जिन्दगी की डोर छोटी, राजनीतिक लास्टिक।

फिर से नेता द्रौपदी की, चीर हरने आ गए।।/ - उला और सानी में सम्बन्ध स्पष्ट नहीं हो रहा. लास्टिक और द्रौपदी की चीर का क्या सम्बन्ध?

/लो गिरे रूपया यहां पर, प्याज मंहगे आ गए।।/ - 'गिरे रुपया' की जगह 'गिरा रुपया' होना था. 'प्याज मंहगे आ गए' में भी मुझे संदेह है. 'प्याज' एकवचन है. तो इसके लिए 'आ गए' लगाना उचित है क्या? मेरे विचार से 'प्याज मंहगा हो गया' सही वाक्य है.

मैं स्वयं भी सीखने के शुरूआती दौर में हूँ. आशा है, आप इन सुझावों को अन्यथा नहीं लेंगे.

इति शुभम्

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 18, 2013 at 9:44pm

नफरतों की आग फैली, द्वेष फलते पीढि़यां।

अम्न जिंदा जल रही है, घी गिराने आ गए।।........वाह! यह शेर बहुत पसंद आया

तहे दिल से दाद कुबूल कीजिये आदरणीय केवल जी

Comment by D P Mathur on August 18, 2013 at 9:35pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी नमस्कार, सुन्दर गजल  के लिए बधाई  !

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 18, 2013 at 7:50pm

आ0 अरून अनंत जी,  आपके स्नेह, उत्साहवर्धन तथा वांछित सुझावों हेतु आपका तहेदिल से शुक्रिया सहित बहुत बहुत आभार। भाई जी, डालर के मुकाबले रूपया गिरा तभी तो प्याज का दाम चढ़ गया। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 18, 2013 at 7:38pm

आ0 विनीता जी,  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल शुक्रिया सहित बहुत बहुत आभार।  सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
18 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
15 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
16 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service