For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हो नहीं आक्रांत,
समर्पण भाव पर
सुर्ख आह्लाद की
जो छाप है,
भाव उन्नत उपजते
बुद्धि उर्वर,विवेक में
समृद्ध मनन का निवास है,
ना विकलता,
उर में यदि
धवल शान्ति का
प्रकाश विद्यमान है,
जीवन्तता
निरन्त चक्र सम
चैतन्यता
रग-रग मे तुम्हारे जो व्याप्त है,
तो समझ लो
हे आत्मन्!
ये तुम्हारा ही नहीं
राष्ट्र का उत्थान है।
स्व से उठकर
'पर' पर जो तुम्हारा राग है,
ध्वज तुम्ही हो,आन और...
राष्ट्र-गौरवगान हो।
-विन्दु
(मौलिक/अप्रकाशित)

Views: 688

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on August 20, 2013 at 2:52pm

आदरणीया वंदना जी,अतीव सुन्दर रचना ///कई बार पढ़ा मैंने /// हार्दिक बधाई

Comment by रविकर on August 19, 2013 at 10:56am

बढ़िया-है आदरणीया वंदना जी-
शुभकामनायें-

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 18, 2013 at 8:21pm

सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीया वंदना जी

Comment by राज़ नवादवी on August 18, 2013 at 11:53am

'उर में यदि
धवल शान्ति का
प्रकाश विद्यमान है,
जीवन्तता
निरन्त चक्र सम
चैतन्यता
रग-रग मे तुम्हारे जो व्याप्त है,
तो समझ लो
हे आत्मन्!
ये तुम्हारा ही नहीं
राष्ट्र का उत्थान है।'

ये पंक्यियाँ सुन्दर बन पडी हैं यद्यपि पूर्ण कविता में विन्यास के गठाव की संभावनाएं भी शेष हैं. बधाई हो! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 17, 2013 at 5:17pm

बहुत अच्छी रचना , अति सुन्दर !! बधाई !!

Comment by annapurna bajpai on August 17, 2013 at 1:52pm
आदरणीया वंदना जी अनुपम रचना के लिए बधाई आपको ।
Comment by Shyam Narain Verma on August 17, 2013 at 12:00pm
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
9 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service