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गुमशुदा खुशियां कहां रहने लगी है आज छुप कर

गुमशुदा खुशियाँ कहाँ रहने लगी है आज छुप कर

***************************************

दर्द कैसे कम हुआ ये आंसुओं पूछ लेना

क्या अन्धेरों से डरे थे, तुम दियों से पूछ लेना

खुद जले थे,और कैसे, वो अन्धेरों से लडे थे

जानना चाहो अगर तो,जुगनुओं से पूछ लेना

आपकी प्रतिक्रिया कितनी सही कितनी ग़लत है

फैसला करने से पहले दोस्तों से पूछ लेना

रहबरी के नाम पे तो लूट जारी है यहां पर

रास्ता भूलो अगर तो रहजनों से पूछ लेना

गुमशुदा खुशियाँ कहाँ रहने लगी है आज छुप कर  

जो भी ग़म घेरे हुये हैं, उन ग़मों से पूछ लेना

किस तरह मैने गुज़ारा वक़्त अपना उन दिनों में

तुम घिरोगे जब कभी तो उलझनों से पूछ लेना

.

गिरिराज भंडारी

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

Views: 978

Comment

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Comment by Neeraj Nishchal on August 16, 2013 at 10:17pm

- रहबरी ---(-एक व्यंग है ) हमारे पथ प्रदर्शक जिस तरीक़े , निर्दयता से हमे लूट है , सच के लुटेरे होते तो इतनी बेरहमी से नही लूट्ते , इस लिये अब भरोसा रहजन पे जादा हो गया है या करना चाहिये !

कमाल कर दिया ,मालिक इतना गहरा अर्थ
जहाँ ना पहुंचे रवि ।
वहां पहुंचे रवि ।
इस बात को आपने आज सार्थक कर दिया ,
बहुत बहुत आभार
बहुत ज्यादा ख़ुशी हो गयी मिलकर आपसे ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 16, 2013 at 7:14pm

गुमशुदा खुशियाँ कहाँ रहने लगी है आज छुप कर  

जो भी ग़म घेरे हुये हैं, उन ग़मों से पूछ लेना

                                                         नीरज भाई , इस शे र मे मैने ये कहने की कोशिश की है , इंसान अपने दुखों का कारण स्वयँ को घेरे हुये दुखों के कारणो( से पूछ कर )का विश्लेशण कर के जान सकता है , और उन कारणो को हटा देने से ही गुमी हुई खुशियों का प्राप्त कर सकता है !( इंसान स्वभावतह अपने दुखों का कारण हमेशा दूसरो मे खोजता है , खुद की गलतियो मे कभी नही खोजता )

2- किस तरह --- इसमे बड़ी बात नही है , जिस प्रकार आंतरिक खुशी को शब्दो मे बयान करना मुश्किल होता है वैसे ही सहन किये तक़लीफो को भी बताना मुश्किल है , जब आप उलझन मे घिरोगे तभी समझ सकोगे !

3 - रहबरी ---(-एक व्यंग है ) हमारे पथ प्रदर्शक जिस तरीक़े , निर्दयता  से हमे लूट है , सच के लुटेरे होते तो इतनी बेरहमी से नही लूट्ते , इस लिये अब भरोसा रहजन पे जादा हो गया है या करना चाहिये !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 16, 2013 at 6:39pm

हौसला अफज़ाई के लिये शुक्रिया नीरज भाई !!

Comment by Neeraj Nishchal on August 16, 2013 at 5:14pm
गुमशुदा खुशियाँ कहाँ रहने लगी है आज छुप कर
जो भी ग़म घेरे हुये हैं, उन ग़मों से पूछ लेना

किस तरह मैने गुज़ारा वक़्त अपना उन दिनों में
तुम घिरोगे जब कभी तो उलझनों से पूछ लेना
.
भंडारी जी बेशक ये पंक्तियाँ बहुत खूबसूरत हैं ,
पर इस पंक्ति का अर्थ स्पष्ट करने की कृपा करें ,
इतनी सुन्दर ग़ज़ल के लिए आभार ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 16, 2013 at 9:54am

आदरणीय माथुर जी , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 16, 2013 at 9:53am

बहुत बहुत धन्यवाद , महिमा जी !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 16, 2013 at 9:50am

बहुत 2 शुक्रिया , आन्नपुरणा जी हौसला अफज़ाई के लिये !

Comment by annapurna bajpai on August 15, 2013 at 10:22pm

आदरणीय गिरि राज जी बहुत उम्दा प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by MAHIMA SHREE on August 15, 2013 at 10:03pm

गुमशुदा खुशियाँ कहाँ रहने लगी है आज छुप कर  

जो भी ग़म घेरे हुये हैं, उन ग़मों से पूछ लेना

वाह बहुत खूब !! बधाई आपको

Comment by D P Mathur on August 15, 2013 at 9:54pm

अच्छी गजल की बधाई स्वीकार करें !

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